Garud Puran: हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद मृतक की आत्मा की शांति के लिए तेरहवीं भोज की परंपरा का पालन किया जाता है. इसे ब्रह्मभोज के रूप में जाना जाता है, लेकिन समय के साथ इसे मृत्यु भोज कहा जाने लगा है. इस परंपरा को लेकर समाज में विभिन्न धारणाएं प्रचलित हैं, खासकर तेरहवीं के भोजन को लेकर.
गरुड़ पुराण और महाभारत के अनुशासन पर्व में तेरहवीं भोज और मृत्यु भोज को लेकर विस्तृत चर्चा है. इन ग्रंथों में बताया गया है कि यह भोजन कब, किन परिस्थितियों में और किनके लिए किया जाना चाहिए. साथ ही, यह भी समझाया गया है कि इसका पालन करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए.
गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा तेरह दिनों तक अपने परिवार और घर के सदस्यों के बीच रहती है. तेरहवें दिन ब्रह्मभोज कराने से मृत आत्मा को परलोक की यात्रा में मदद मिलती है. गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि मृत्यु भोज का उद्देश्य केवल जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को भोजन कराना है. यह उनके लिए पुण्यकारी माना गया है. लेकिन यदि कोई संपन्न व्यक्ति तेरहवीं का भोजन करता है, तो इसे गरीबों का हक छीनने जैसा अपराध माना गया है.
महाभारत के अनुशासन पर्व में मृत्यु भोज को लेकर सावधान किया गया है. इसमें कहा गया है कि मृत्यु भोज खाने से व्यक्ति की ऊर्जा और सकारात्मकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. एक बार दुर्योधन ने श्रीकृष्ण को भोज पर आमंत्रित किया, लेकिन श्रीकृष्ण ने मना कर दिया. उन्होंने कहा, "सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः" अर्थात, जब खिलाने वाले और खाने वाले दोनों का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए. First Updated : Wednesday, 27 November 2024