यमराज का भव्य भवन: कालीत्री और उसके रहस्यमय विवरण

  यमराज के भव्य भवन के बारे क्या आप जानते हैं. आज हम आपको इसकी जानकारी देंगे तो हैरान रह जाएंगे. उनके राजमहल को 'कालीत्री' के नाम से जाना जाता है. गरूड पुराण में इसकी विस्तार से जानकारी दी गई है. दूरी की बात करें तो हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अधोलोक से दक्षिण दिशा में 86,000 योजन की दूरी पर यमराज का घर स्थित है. 

Lalit Sharma
Edited By: Lalit Sharma

धार्मिक खबर. यमलोक में प्रवेश के लिए चार द्वार होते हैं, जो चारों दिशाओं में स्थित हैं। प्रत्येक द्वार का महत्व अलग-अलग है। दक्षिण दिशा का द्वार पापियों के लिए है, जो अपने कर्मों के कारण यमराज की नगरी में प्रवेश करते हैं। वहीं, दान-पुण्य करने वाले लोग पश्चिमी द्वार से यमलोक में प्रवेश करते हैं। उत्तरी द्वार सबसे उत्तम माना जाता है, और यह सत्यवादी और सात्विक व्यक्तियों के लिए है। यह द्वार माता-पिता और गुरुजनों की सेवा करने वाले लोगों के लिए भी है।

उत्तर दिशा का द्वार (स्वर्ग द्वार)

उत्तर दिशा में स्थित द्वार को स्वर्ग द्वार कहा जाता है। यह द्वार विशेष रूप से सिद्ध संतों और मुनियों के लिए है। इस द्वार से प्रवेश करने वाले आत्माओं का स्वागत अप्सराएं, देवता और गंधर्व करते हैं। यह द्वार विशेष रूप से धार्मिक और पुण्यात्मा व्यक्तियों के लिए होता है, जिन्हें अपार सुख और शांति मिलती है।

यमराज के सेवक और रक्षक

यमराज की नगरी की रक्षा के लिए कई सेवक नियुक्त किए गए हैं। यमदूत यमराज के प्रमुख सेवक होते हैं। इनके अलावा, यमराज के द्वारपाल वैध्यत होते हैं। यमलोक के रक्षकों में महाण्ड और कालपुरुष का भी महत्वपूर्ण स्थान है। इसके अतिरिक्त, यमलोक की सुरक्षा में दो कुत्ते भी योगदान देते हैं, जिनकी चार आंखें और चौड़े नथुने होते हैं।

च‌ित्रगुप्त का भवन

यमलोक में च‌ित्रगुप्त का भवन स्थित है, जो प्राणियों के कर्मों का हिसाब रखने वाले देवता हैं। च‌ित्रगुप्त के भवन के चारों ओर विभिन्न प्रकार के रोगों का निवास होता है। यह भवन यमलोक की महत्वपूर्ण जगहों में से एक है, जहां से यमराज के आदेशों का पालन होता है। च‌ित्रगुप्त के भवन से 80 किलोमीटर दूर यमराज का मुख्य भवन स्थित है।

पुष्पोदका नदी और विश्राम स्थल

यमलोक में पुष्पोदका नाम की एक नदी बहती है, जिसका जल स्वच्छ और शीतल होता है। नदी के किनारे सुंदर छायादार वृक्ष लगे होते हैं, जो आत्मा को विश्राम देने के लिए आदर्श स्थान हैं। यह स्थल आत्मा को थोड़ी देर विश्राम करने का अवसर प्रदान करता है। यहां पर परिजनों द्वारा किए गए पिंडदान और तर्पण भी आत्मा को प्राप्त होते हैं, जिससे उसे शांति मिलती है।

यमराज का भवन और सभा

यमराज का भवन देव शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा बनाया गया है। इस भवन में सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं उपलब्ध हैं। यमराज की सभा में मनुष्य और देवताओं की इच्छाओं का पूर्ण होना एक सामान्य बात है। यहां कई चंद्रवंशी और सूर्यवंशी राजा रहते हैं, जिनकी सलाह और नीति यमराज को प्रेतात्माओं को उनके कर्मानुसार फल देने में मदद करती है। यमराज की सभा में बैठकर वह आत्माओं को उनके कर्मों का हिसाब देते हैं और उन्हें उचित न्याय प्रदान करते हैं। 

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12 December 2024, 01:20 PM IST

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