Guru Purnima 2024: भारत ही नहीं पूरी दुनिया में पुरातन काल से मनुष्य को सीखने सिखाने की आवश्यकता पड़ी है तब से ही गुरू-शिष्य के संबंध का समाज में उच्चतम स्थान है. भारत के संबंध में बात की जाए तो हमारी यहां गुरू को सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है जैसा कि कबीर जी ने लिखा है - गुरु गोविंद दोउ खड़े , काके लागूं पाएं, बलिहारी गुरु आपनें , गोविंद दियो बताए, अर्थात गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर है. हालांकि, आज के दौर में इसके मायने काफी बदल गए हैं. आइये पढ़ें वो 4 कहानी जो अर्पण-समर्पण के संंबंध को बताती हैं.
गुरु के बिना किसी लक्ष्य तक पहुंच पाना संभव नहीं है. गुरु ही जीवन जीने का सलीका और जीवन की कठिनाइयों से लड़ने के लिए तैयार करता है. भारतीय इतिहास पर नजर डालें तो गुरु शिष्य परम्परा के अनेकों उदाहरण सुनने मिलते हैं . इसमें द्रोणाचार्य-एकलव्य, परशुराम-कर्ण, शुक्राचार्य दैत्य गुरु, चाणक्य और चंद्रगुप्त कुछ खास हैं. आइये जानें इनकी कहानी.
1. द्रोणाचार्य-एकलव्य- गुरु की मूर्ति रख एकलव्य धनुर्धर बना और गुरु ने अपने मानक शिष्यों के लिए उससे गुरु दक्षिणा के रूप में अंगूठा मांग लिया.
2. परशुराम-कर्ण- कर्ण ने अपने गुरु को कीड़े से बचाने के लिए खुद ही उसका शिकार बनना स्वीकार किया.
3. शुक्राचार्य दैत्य गुरु- जिन्होंने अपने शिष्यों को कामयाब करने के लिए हर नाकाम कोशिश की और हमेशा उनके लिए खड़े रहे.
4. चाणक्य और चंद्रगुप्त- इसी जोड़ी ने अखंड भारत को जन्म दिया. बाल्यकाल से लेकर राजा बनने तक चाणक्य और चंद्रगुप्त साथ रहे.
ऊपर गुरु शिष्य की 4 जोड़ी और उनकी कहानी बताती है कि उस समय गुरु-शिष्य का रिश्ता अर्पण और समर्पण का होता था. इससे सामाजिक मौलिकता और नैतिकता को बल मिलता था. शिष्य का गुरु के प्रति सम्पूर्ण समर्पण और गुरु का स्नेह शिष्य के प्रति निस्वार्थ होता था. शायद इन्हीं वजहों से कुछ कहानियां ऐतिहासिक हो गईं. हमें कोशिश करना चाहिए कि आज भी इन रिश्तों का कायम रखें. First Updated : Sunday, 21 July 2024