Ram Lalla Surya Tilak: कैसे होता है रामलला का 'सूर्य तिलक', जानें इस्तेमाल होती है कौनसी तकनीक?
Ram Lalla Surya Tilak: रामनवमी 2025 के शुभ अवसर पर अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में भगवान रामलला का दिव्य 'सूर्य तिलक' संपन्न हुआ. यह नजारा श्रद्धा और विज्ञान के अनूठे मेल का प्रतीक बना, जब दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें सीधे रामलला के ललाट पर पड़ीं.

Ram Lalla Surya Tilak: रामनवमी के पावन अवसर पर अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में प्रभु श्रीरामलला का भव्य 'सूर्य तिलक' किया गया. यह दृश्य न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक था, बल्कि आधुनिक विज्ञान और परंपरा के अद्भुत संगम का उदाहरण भी बना. सुबह से ही रामलला की विशेष पूजा-अर्चना शुरू हो गई थी और दोपहर 12 बजे जैसे ही सूर्य की किरणें सीधे उनके ललाट पर पड़ीं, श्रद्धालुओं में उत्साह की लहर दौड़ गई.
अयोध्या में रविवार, 6 अप्रैल को रामनवमी पर्व के मौके पर लाखों श्रद्धालु रामलला के दर्शन के लिए पहुंचे. प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए और पूरे शहर को जोन और सेक्टर में बांटकर व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित किया. इस विशेष दिन पर भगवान रामलला के सूर्य तिलक की परंपरा को सजीव करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक का सहारा लिया गया.
#WATCH | ‘Surya Tilak’ illuminates Ram Lalla’s forehead at the Ram Janmabhoomi Temple in Ayodhya, on the occasion of Ram Navami
— ANI (@ANI) April 6, 2025
'Surya Tilak' occurs exactly at 12 noon on Ram Navami when a beam of sunlight is precisely directed onto the forehead of the idol of Ram Lalla, forming… pic.twitter.com/gtI3Pbe2g1
क्या होता है सूर्य तिलक?
सूर्य तिलक एक धार्मिक और प्रतीकात्मक परंपरा है, जो प्रभु श्रीराम की सूर्यवंशी परंपरा से जुड़ी हुई है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेता युग में जन्मे भगवान श्रीराम सूर्य वंश के थे, इसलिए उन्हें सूर्य तिलक समर्पित किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन सूर्यदेव स्वयं भगवान श्रीराम के ललाट पर तिलक करते हैं, जिसे गहन श्रद्धा और आस्था का प्रतीक माना जाता है.
सूर्य तिलक की तकनीक
राम मंदिर के निर्माण के समय इस अनोखी परंपरा को ध्यान में रखते हुए एक विशेष ऑप्टिकल सिस्टम तैयार किया गया. इस प्रणाली के तहत सूर्य की किरणों को मंदिर के शिखर से सीधे रामलला की प्रतिमा के ललाट तक पहुंचाया जाता है, ताकि दोपहर 12 बजे ठीक सूर्य तिलक हो सके.
जानें पूरा सिस्टम?
इस संपूर्ण प्रक्रिया में तीन विशेष दर्पणों का प्रयोग किया गया है. पहला दर्पण मंदिर के शिखर पर स्थापित है, जो दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणों को 90 डिग्री पर मोड़कर एक पाइप के माध्यम से दूसरे दर्पण तक पहुंचाता है. यह किरणें फिर पीतल की पाइप की सहायता से तीसरे दर्पण तक जाती हैं, जिससे अंततः यह प्रकाश रामलला के ललाट पर केंद्रित होता है और सूर्य तिलक की परंपरा सजीव होती है.