Kinnaur Kailash : जानिए क्यों कठिन है किन्नौर कैलाश की यात्रा, क्या है इस शिवलिंग की मान्यता
Kinnaur Kailash Yatra : किन्नर कैलाश पर्वत समुद्र तल से 6050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यहां पर 79 फिट ऊंचा शिवलिंग स्थापित है. ये दुर्गम स्थान पर स्थित है यही वजह है कि यहां पर बहुत कम लोग ही दर्शन के लिए आते हैं.
Kinnaur Kailash Yatra : भारत में भगवान शिव को समर्पित बहुत से शिव मंदिर हैं. भोलेनाथ के भक्त अपने आराध्य को प्रसन्न करने के लिए पूजा-अर्चना करते हैं. जहां भक्त अलग-अलग शिव मंदिर में जाकर रुद्राभिषेक और जलाभिषेक करते हैं. देश में अमरनाथ यात्रा, केदारनाथ मंदिर, बाबा विश्वनाथ, नीलकंड. कैलाश यात्रा आदि भगवान शिव को समर्पित हैं. लेकिन इन सभी यात्राओं में एक ऐसी यात्रा भी है जहां पर जाना हर किसी की बस की बात नहीं होती. हम बात कर रहे हैं कि किन्नौर कैलाश यात्रा की. यह हिमाचल के किन्नौर जिले में तिब्बत सीमा के पास स्थित है.
79 फिट ऊंचा है शिवलिंग
किन्नर कैलाश पर्वत समुद्र तल से 6050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यहां पर 79 फिट ऊंचा शिवलिंग स्थापित है. इसके चारों-अरोप बर्फीले पहाड़ों की चोटियां हैं. जो कि इसकी खूबसूरती को और बढ़ाती है. ऊंचाई पर होने की वजह से किन्नर कैलाश शिवलिंग हर ओर से बादलों से घिरा रहता है. ये दुर्गम स्थान पर स्थित है यही वजह है कि यहां पर बहुत कम लोग ही दर्शन के लिए आते हैं. किन्नर कैलाश का प्राकृतिक सौंदर्य आपको मंत्र मुग्ध कर देने वाला है.
किन्नौर कैलाश का धार्मिक महत्व
किन्नर कैलाश हिन्दुओं व बौद्ध धर्म के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण आध्यात्मिक स्थल है. हिन्दू धर्म में इस हिम खंड को भगवान शिव के प्राकृतिक शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है. आपको बता दें कि लोग किन्नर कैलाश की परिक्रमा भी करते हैं. जो कि तीर्थ यात्राओं में से एक है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हिमालये से निकलने वाली पवित्रतम नंदी गंगा का उद्भव गोमुख से होता है. ऐसा माता जाता है कि देवताओं की घाटी कुल्लू भी इसी हिमालय रेंज में है. इस घाटी में 350 से अधिक मंदिर हैं.
शिव-पार्वती मिलन स्थल
पौराणिक कथा के अनुसार किन्नर कौलाश भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ा स्थल है. माता जाता है कि यहां पर शिव और पार्वती का मिलन हुआ था. भगवान शिव रोज सर्दी में किन्नर कैलाश शिखर पर देवी और देवताओं की बैठक संपन्न की थी. इस शिवलिंग की खास बात है कि ये दिन में कई बार अपना रंग बदलता है. सूर्योदय से पहले सफेद, सूर्योदय के बाद पीला, सूर्य़अस्त से पहले लाल और सूर्य़अस्त के बाद काले रंग का हो जाता है.
बहुत मुश्किल है चढ़ाई
किन्नर कैलाश पर्वत पर ट्रैकिंग करने का सबसे अच्छा समय मई से अक्टूबर तक का है. यहां पर सर्दियों में अधिक बर्फ पड़ती है और मानसून में बारिश बहुत होती है. इसलिए मई से अक्टूबर के बीच का टाइम सबसे अच्छा है. यहां पर चढ़ाई करना बहुत मुश्किल है, यहां पर 14 किलोमीटर लंबे ट्रेक के आस-पास बर्फीली चोटियां हैं. लेकिन सेब के बगान, सांग्ला और हंगरंग वैली के नजरों की बात ही कुछ ओर है.
सबसे पहला पड़ाव तांगलिंग गांव है यहां से 8 किलोमीटर दूर मलिंग खटा तक ट्रेक करके जाना होता है. फिर 5 किलोमीटर पार्वती कुंड तक जाते हैं और इस कुंड में सिक्का डालने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं. फिर यहां से करीब 1 किलोमीटर बाद किन्नर कैलाश स्थित है.