दाढ़ी-बाल कटवाना पितृ पक्ष में क्यों है मना? जानें इसके पीछे का धार्मिक और वैज्ञानिक कारण

Pitra Paksha 2024: पितृ पक्ष को लेकर लोगों की कई तरीके की मान्यता है, इसमें कई तरीके के नियम को भी फॉलो किया जाता है. पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा से होती है और ये आश्विन माह की अमावस्या तिथि पर समाप्त होता है. इन्हें बोलचाल की भाषा में 'श्राद्ध' भी कहा जाता है. लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों पितृ पक्ष के दौरान बाल और दाढ़ी कटवाने को अशुभ माना जाता है.

JBT Desk
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Pitra Paksha 2024: पितृपक्ष इस साल 17 सितंबर से 02 अक्टूबर तक रहने वाला है. इस दौरान बाल और दाढ़ी न कटवाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इसमे कई तरीके के नियम को भी माना जाता है. वैदिक पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा से होती है और यह आश्विन माह की अमावस्या तिथि पर समाप्त होता है. इन्हें बोलचाल की भाषा में ‘श्राद्ध’ भी कहा जाता है और इस अवधि को पितरों की कृपा प्राप्ति के लिए उत्तम माना गया है. 

ये एक ऐसा समय होता है जब लोग अपने पितरों को श्रद्धांजलि देने के लिए कई अनुष्ठान और पिंडदान करते हैं, लेकिन अब सवाल ये उठता है कि आखिर क्यों पितृ पक्ष के दौरान बाल और दाढ़ी कटवाने को अशुभ माना जाता है? इस विषय पर प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोण से प्रकाश डाला है.

आदर का प्रतीक

पंडित संजय उपाध्याय के अनुसार माना गया है कि , पितृ पक्ष में बाल और दाढ़ी न कटवाने की परंपरा का धार्मिक आधार पितरों के प्रति सम्मान और श्रद्धा से जुड़ा है. ये समय पितरों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान करने का होता है. इस दौरान बाल और दाढ़ी न कटवाने को पितरों के प्रति आदर का प्रतीक माना जाता हैं. ऐसे में बाल-दाढ़ी कटवाना मना होता है. 

क्या है धार्मिक आधार?

पंडित संजय उपाध्याय के अनुसार  पितृ पक्ष को एक प्रकार का शोककाल माना जाता है, जिसमें परिवार के सदस्यों को अपने पितरों को सम्मान देने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से संयमित रहने की सलाह दी जाती है. बाल और दाढ़ी काटने को इस शोक के दौरान अशुभ माना जाता है, क्योंकि इसे पितरों की स्मृति के प्रति असम्मान के रूप में देखा जाता है. पितृ पक्ष के दौरान संयम, साधना, और त्याग पर जोर दिया जाता है. बाल और दाढ़ी न काटकर व्यक्ति अपने पितरों के प्रति अपनी श्रद्धा और संयम का प्रदर्शन करता है.

क्या है वैज्ञानिक आधार?

पंडित संजय उपाध्याय के अनुसार इस परंपरा का वैज्ञानिक आधार भी है, जो प्राचीन काल से हमारे पूर्वजों की गहन समझ को दर्शाता है. पितृ पक्ष का समय मानसून के बाद आता है, जब मौसम में बदलाव होता है. इस समय बाल और दाढ़ी न काटने से शरीर को ठंड से बचाया जा सकता है, क्योंकि बाल और दाढ़ी शरीर को प्राकृतिक रूप से गर्म रखने में मदद करते हैं. ये शरीर को बीमारियों से बचाने का एक पारंपरिक तरीका हो सकता है.

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31 August 2024, 06:44 AM IST

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