Mahakumbh 2025: महाकुंभ में नागा साधु हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं. निर्वस्त्र शरीर, भस्म से लिपटा तन, लंबी जटाएं और रुद्राक्ष की माला—इनकी यह अनोखी छवि श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए खास आकर्षण होती है. कुंभ मेले में ये साधु प्रमुख अखाड़ों से आते हैं और दिगंबर स्वरूप में नजर आते हैं. लेकिन कुंभ समाप्त होते ही ये साधु अचानक कहां गायब हो जाते हैं, यह सवाल हर किसी के मन में उठता है.
नागा साधुओं का जीवन रहस्यमय और कठोर तप पर आधारित होता है. कुंभ के दौरान इनकी उपस्थिति अद्भुत होती है, लेकिन इसके बाद ये अपनी दिनचर्या और साधना में लीन हो जाते हैं. आइए, जानते हैं नागा साधुओं की इस रहस्यमय दुनिया के बारे में.
नागा साधु वैराग्य और कठोर तपस्या के प्रतीक होते हैं. ये साधु मुख्यतः अखाड़ों से जुड़े रहते हैं, जैसे पंचदशनाम जूना अखाड़ा और महापरिनिर्वाण अखाड़ा. कुंभ में ये अपने दिगंबर स्वरूप, त्रिशूल, भस्म और रुद्राक्ष के साथ दिखते हैं. नागा साधु शाही स्नान का नेतृत्व करते हैं, जो कुंभ का सबसे पवित्र क्षण माना जाता है.
कुंभ समाप्ति के बाद नागा साधु अपने आश्रमों और अखाड़ों में लौट जाते हैं. वहां ये योग, ध्यान और कठोर तपस्या में लीन रहते हैं. इनका मानना है कि धरती को बिस्तर और आकाश को चादर मानकर जीवन बिताना वैराग्य का असली रूप है.
नागा साधु कुंभ के बाद हिमालय, जंगलों और एकांत स्थानों में जाकर साधना करते हैं. ये फल-फूल खाकर या दीक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करते हैं. उनका पूरा जीवन तपस्या, योग और आध्यात्मिकता में डूबा रहता है.
कुछ नागा साधु प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन जैसे तीर्थ स्थलों में रहते हैं. ये धार्मिक यात्राओं पर भी जाते हैं और सनातन परंपराओं का पालन करते हुए समाज से दूर वैराग्यपूर्ण जीवन जीते हैं.
नागा साधु अपने निर्वस्त्र स्वरूप, भभूत से लिपटे शरीर और कठोर अनुशासन के लिए प्रसिद्ध हैं. इनकी जीवनशैली पूरी तरह से समाज से अलग होती है, जो उन्हें साधारण मनुष्यों से विशिष्ट बनाती है. First Updated : Thursday, 16 January 2025