जंगल, गुफा या हिमालय....कुंभ के बाद कहां गायब हो जाते हैं नागा साधु? जानिए संन्यासियों की रहस्यमयी यात्रा की कहानी

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है जो सोमवार 13 जनवरी से शुरू हो जाएगा. इस भव्य मेले में नागा साधु आकर्षण होते हैं. उनकी रहस्यमयी जिंदगी और कठोर तपस्या हमेशा से रहस्यमय रही है जिसके बारे में लोगों को जानने में उत्सुकता होती है. हालांकि,  वह कुंभ मेले में कहां से आते हैं और कहां जाते हैं ये शायद ही कोई जानता है. तो चलिए आज हम आपको नागा साधु के रहस्यमयी दुनिया के बारे में बताते हैं.

Deeksha Parmar
Edited By: Deeksha Parmar

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ का भव्य आयोजन होने जा रहा है, जो 13 जनवरी से शुरू होगा. कुंभ मेले में नागा साधु हमेशा आकर्षण का केंद्र रहते हैं. वे अपने अनोखे पहनावे, भस्म लगे शरीर और त्रिशूल के साथ लोगों का ध्यान खींचते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुंभ खत्म होते ही ये साधु कहां गायब हो जाते हैं? अगर नहीं तो चलिए जानते हैं.

हिमालय में साधना और तपस्या

कहा जाता है कि नागा साधु अधिकतर समय हिमालय के दुर्गम इलाकों में साधना और तपस्या में बिताते हैं. उनकी दुनिया समाज से बिल्कुल अलग और रहस्यमयी होती है. नागा साधु कुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों में ही आम लोगों के बीच आते हैं.  इसके अलावा कभी भी लोगों को दिखाई नहीं देते हैं. यही वजह है कि कुंभ मेले में नागा साधु आकर्षण का केंद्र होते हैं.

अखाड़ों का प्रतिनिधित्व

कुंभ मेले में नागा साधु अपने अखाड़ों का प्रतिनिधित्व करते हैं. भारत में वाराणसी, हरिद्वार, प्रयागराज और उज्जैन जैसे तीर्थ स्थलों पर कई बड़े अखाड़े हैं. कुंभ के बाद साधु इन्हीं अखाड़ों में लौट जाते हैं. जहां वे ध्यान, साधना और धार्मिक शिक्षा में समय बिताते हैं.

नए साधुओं को दीक्षा

नागा साधु बनने की प्रक्रिया भी कुंभ मेले का एक खास हिस्सा होती है. नागा साधु बनने के इच्छुक लोग अखाड़ों से जुड़ते हैं और उन्हें दीक्षा दी जाती है. अलग-अलग तीर्थ स्थलों पर दीक्षा लेने वाले साधुओं के अलग नाम होते हैं. जैसे प्रयागराज में दीक्षा लेने वाले को "राजराजेश्वर", उज्जैन में "खूनी नागा" और हरिद्वार में "बर्फानी नागा" कहा जाता है.

धार्मिक यात्राएं और जीवनशैली

कई नागा साधु कुंभ के बाद धार्मिक यात्राओं पर निकल जाते हैं. वे अलग-अलग मंदिरों और तीर्थ स्थलों पर जाकर धार्मिक आयोजनों में हिस्सा लेते हैं. उनका जीवन संयमित और साधना से भरा होता है, जो उन्हें समाज से अलग और आजाद बनाता है.  

काशी और अन्य तीर्थों पर रहते हैं

कुछ नागा साधु काशी, हरिद्वार, ऋषिकेश और उज्जैन जैसे तीर्थ स्थलों पर स्थायी रूप से रहते हैं. ये स्थान उनके लिए धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों के केंद्र हैं. वहां वे साधना के साथ-साथ लोगों को धार्मिक ज्ञान भी देते हैं.

रहस्यमयी लेकिन प्रेरणादायक जीवन

नागा साधुओं का जीवन तपस्या और साधना का प्रतीक है. वे भले ही समाज से दूर रहते हों, लेकिन उनकी उपस्थिति और जीवनशैली सनातन धर्म की गहराई और आध्यात्मिकता को दर्शाती है. कुंभ मेले में उनकी झलक लोगों को उनकी रहस्यमय दुनिया के बारे में सोचने पर मजबूर कर देती है.

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12 January 2025, 09:22 AM IST

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