Mahakumbh 2025: पूर्णिमा से क्यों शुरू होता है कुंभ, जानें इसके बारे में सब कुछ
Mahakumbh 2025: महाकुंभ 2025 प्रयागराज में शुरू हो चुका है. यह मेला चार प्रमुख स्थानों पर आयोजित होता है और इसका उद्देश्य दुनिया भर से लोगों को एकजुट करना है. इस दौरान भक्त कल्पवास करते हैं और शाही स्नान के अनुष्ठानों में भाग लेते हैं. महाकुंभ का आयोजन पौष पूर्णिमा से शुरू होता है.
Mahakumbh 2025: प्रयागराज में हर 144 साल में आयोजित होने वाला महाकुंभ मेला इस बार भी अपने भव्य आयोजन से श्रद्धालुओं का ध्यान आकर्षित कर रहा है. महाकुंभ, जो आध्यात्मिकता, धर्म, समानता और एकता का प्रतीक है, दुनिया भर से लाखों भक्तों को अपनी ओर खींचता है. इस आयोजन में श्रद्धालु शाही स्नान करने के साथ-साथ 40-44 दिनों के कल्पवास में भाग लेते हैं, जिसमें वे सादगीपूर्ण जीवन जीते हैं. 2025 में यह महाकुंभ मेला अपने ऐतिहासिक महत्व के साथ शुरू हो गया है. लोग हर साल इस अद्भुत धार्मिक अनुभव का हिस्सा बनने के लिए यहां एकत्रित होते हैं.
महाकुंभ के आयोजन का उद्देश्य केवल धार्मिक आस्था का पालन करना नहीं बल्कि यह दुनिया भर से आए लोगों को एक मंच पर लाकर उन्हें एकजुट करने का है. यह मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है और चार प्रमुख स्थलों – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है. महाकुंभ का स्थान ग्रहों की स्थिति के आधार पर निर्धारित किया जाता है, और इसके आयोजन का समय भी विशेष खगोलीय घटनाओं से जुड़ा होता है.
कुंभ के पीछे की पौराणिक कहानी
महाकुंभ की उत्पत्ति समुद्र मंथन से जुड़ी हुई मानी जाती है. पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन से अमृत का एक कलश (कुंभ) निकला था, जिसे देवताओं और असुरों के बीच युद्ध के दौरान आकाश से गिरकर चार अलग-अलग पवित्र स्थानों पर पाया गया. इन स्थानों को पवित्र मानकर कुंभ मेला आयोजन किया गया, जो श्रद्धालुओं को दिव्य अनुभव दिलाने के लिए आयोजित किया जाता है.
कुंभ के प्रकार
कुंभ मेला मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है:
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माघ मेला – यह हर साल आयोजित होता है और भारतभर से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है.
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अर्ध कुंभ मेला – हर 6 साल में एक बार आयोजित होता है और यह माघ मेला से थोड़ा बड़ा और प्रसिद्ध है.
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पूर्ण कुंभ मेला – यह हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है और इसे महाकुंभ भी कहा जाता है. 2013 में आयोजित महाकुंभ मेला सबसे भव्य था, और 2025 में भी यह मेला बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है.
महाकुंभ में कल्पवास
महाकुंभ मेला के दौरान, कुछ विशेष भक्त कल्पवास में रहते हैं. कल्पवासियों को 40-44 दिनों तक सादगीपूर्ण जीवन जीने का आदेश दिया जाता है, जिसमें वे सुबह जल्दी उठकर त्रिवेणी संगम में स्नान करते हैं, ध्यान लगाते हैं और शास्त्रों का पाठ करते हैं. यह एक विशेष आध्यात्मिक अनुशासन होता है, जिससे भक्त अपने जीवन को एक नया रूप देने की कोशिश करते हैं.
महाकुंभ का शाही स्नान
महाकुंभ में शाही स्नान का विशेष महत्व है. यह स्नान धार्मिक अनुष्ठान के रूप में माना जाता है, जो श्रद्धालुओं के लिए सबसे पवित्र और मुक्तिदायक अनुभव होता है. इस साल शाही स्नान 14 जनवरी, मकर संक्रांति के दिन शुरू हुआ, और 6 अलग-अलग तिथियों पर आयोजित किया जाएगा.
पौष पूर्णिमा और महाकुंभ का संबंध
महाकुंभ का आयोजन हमेशा पौष पूर्णिमा के दिन से शुरू होता है, जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार पौष माह की पूर्णिमा होती है. यह दिन धार्मिक अनुष्ठानों और आकाशीय पिंडों के संरेखण के कारण विशेष रूप से शुभ माना जाता है. पौष पूर्णिमा पर भक्त अपने कल्पवास की शुरुआत करते हैं और 30 दिनों तक धार्मिक जीवन जीने का संकल्प लेते हैं.
समारोह के महामंडलेश्वर
महाकुंभ मेला में प्रत्येक अखाड़े का अपना महामंडलेश्वर होता है, जो इस आयोजन के दौरान अनुष्ठानों की देखरेख करते हैं और श्रद्धालुओं को दीक्षा देते हैं. इस बार, कुछ विदेशी महामंडलेश्वर भी महाकुंभ का हिस्सा बनेंगे, जिनमें जापान की योगमाता कीको आइकावा और स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन पॉवेल शामिल हैं. ये महामंडलेश्वर अपने-अपने शिक्षाओं और आध्यात्मिक ज्ञान के साथ इस आयोजन की शान बढ़ा रहे हैं.
Disclaimer: ये आर्टिकल धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. JBT इसकी पुष्टि नहीं करता.