मैथिल संस्कृति का गौरव 'जुड़ शीतल' आज, नेपाल तक मनाया जाता है ये पर्व, जानिए क्यों है खास
मैथिल पंचांग के अनुसार, आज 'जुड़ शीतल' पर्व मनाया जा रहा है, जो मैथिल संस्कृति और नेपाल में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. यह पर्व नववर्ष की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है और सत्तू खाने, जल संरक्षण, और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है. इस दिन महिलाएं बच्चों की लंबी उम्र के लिए पूजा करती हैं, और कीचड़ की होली खेलकर गर्मी से राहत पाई जाती है.

मैथिल पंचांग के अनुसार नववर्ष की शुरुआत 'जुड़ शीतल' पर्व से होती है, जिसे मिथिलांचल और नेपाल के कई हिस्सों में पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है. यह पर्व केवल नए साल का स्वागत भर नहीं, बल्कि प्रकृति, जल संरक्षण, स्वास्थ्य और सामाजिक समरसता का संदेश भी अपने साथ लाता है.
15 अप्रैल को मनाए जाने वाले इस पर्व की खास बात यह है कि इसमें खाने-पीने से लेकर पूजा-पाठ तक की हर परंपरा लोक जीवन और पर्यावरण से गहराई से जुड़ी होती है. महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र की कामना करती हैं, सत्तू का सेवन कर गर्मी से राहत पाई जाती है और मिट्टी की होली खेलकर शरीर और मन को ठंडक दी जाती है.
नववर्ष की शुरुआत सत्तू और समरसता से
मैथिल नववर्ष ‘जुड़ शीतल’ के दिन मिथिलांचल के गांव-शहरों में सुबह से ही पूजा-पाठ का माहौल रहता है. महिलाएं सत्तू और कच्चे आम की चटनी प्रसाद के रूप में बनाती हैं. इस दिन घरों में चूल्हा नहीं जलता, बल्कि सभी लोग पहले से बना हुआ सत्तू ही खाते हैं. यह परंपरा केवल परंपरा नहीं, बल्कि शरीर को गर्मी से बचाने और पाचन को दुरुस्त रखने का विज्ञान है. माना जाता है कि सत्तू खाने से पेट ठंडा रहता है और पूरे साल घर में अन्न-धन की कोई कमी नहीं होती.
बच्चों के लिए होती है विशेष पूजा
जुड़ शीतल का एक और खास पहलू यह है कि इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले अपने बच्चों के सिर पर पानी थपथपाकर डालती हैं. मान्यता है कि इससे बच्चों को साल भर शीतलता और स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है. यह परंपरा बच्चों के दीर्घायु जीवन के लिए होती है, जैसा कि छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, उसी तरह यह पर्व भी परिवार की भलाई और संतुलन का प्रतीक है.
मिट्टी की होली और सफाई का संदेश
जुड़ शीतल में होली की भी झलक देखने को मिलती है. लोग अपने घरों, आंगनों और आसपास की सफाई करते हैं और शाम होते ही कीचड़-मिट्टी से होली खेलते हैं. यह परंपरा ना केवल सामाजिक मेलजोल को बढ़ावा देती है, बल्कि गर्मी में मिट्टी के लेप से त्वचा को ठंडक और रोगों से राहत भी मिलती है. गर्मी के मौसम में मिट्टी का महत्व इससे भी समझा जा सकता है कि यह धूप से बचाव करती है और त्वचा को आराम देती है.
जल और वन संरक्षण का जागरूक पर्व
जुड़ शीतल केवल धार्मिक आस्था का पर्व नहीं, यह एक सामाजिक और पर्यावरणीय जागरूकता का उत्सव भी है. पर्व की पूर्व संध्या पर घरों में बर्तन भरकर पानी रखा जाता है. गर्मियों में जल संकट से बचाव और जल संचय के संदेश के साथ, यह परंपरा आग लगने जैसी आपदाओं में तत्काल उपयोगी साबित होती है. साथ ही, तुलसी के पौधे पर ‘पनिसल्ला’ (छोटा पात्र) रखकर उसमें पानी टपकाना वनस्पति और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है.
पर्व के समापन पर होती है खास दावत
जूड़ शीतल के दूसरे दिन घरों में मछली पकाई जाती है और पूरे परिवार के साथ बैठकर विशेष भोजन किया जाता है. यह सामूहिकता और आपसी मेलजोल का प्रतीक है. यही कारण है कि यह पर्व धार्मिक आस्था से कहीं अधिक सामाजिक और पारिवारिक एकता का संदेश देता है.
यह केवल त्योहार नहीं, जीवनशैली है
जुड़ शीतल की खास बात यही है कि यह पर्व केवल एक दिन की परंपरा नहीं, बल्कि एक ऐसी जीवनशैली की सीख देता है जो शुद्धता, समरसता, संतुलन और पर्यावरण की रक्षा को जीवन का हिस्सा बनाता है. आधुनिक समय में जब जल संकट, गर्मी और पारिवारिक विघटन जैसी समस्याएं सामने हैं, ऐसे में जुड़ शीतल जैसा पर्व हमारी सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत बनाए रखने के साथ-साथ समाधान भी प्रस्तुत करता है.