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ना दफनाते, ना जलाते हैं, अघोरियों का रहस्यमयी अंतिम संस्कार; जानिए क्या है सच

अघोरी साधु भगवान शिव के भक्त होते हैं और अघोर पंथ का पालन करते हैं. वे श्मशान में रहकर कठोर साधना करते हैं और जीवन-मृत्यु के रहस्यों को जानने का प्रयास करते हैं. अघोरी संसार के मोह से दूर, तंत्र और आत्मज्ञान की राह पर चलते हैं.

Dimple Yadav
Edited By: Dimple Yadav

भारत की तांत्रिक परंपरा में अघोरी संप्रदाय एक ऐसा रहस्यमयी समुदाय है, जो मृत्यु, श्मशान और आत्मज्ञान से जुड़े रहस्यों से घिरा हुआ है. अघोरी साधु समाज से कटकर जीवन जीते हैं, और उनकी जीवनशैली ही नहीं, बल्कि उनका मृत्यु के बाद का अंतिम संस्कार भी बेहद अलग और चौंकाने वाला होता है. जहाँ हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार के लिए शव को जलाया जाता है और अन्य धर्मों में उसे दफनाया जाता है, वहीं अघोरी न तो शव को जलाते हैं और न ही दफनाते.

अघोरियों की मान्यता है कि शरीर एक साधन मात्र है और मृत्यु के बाद यह पंचतत्व में विलीन हो जाना चाहिए. वे आत्मा को अमर मानते हैं और शरीर को त्याज्य. अघोरी जब जीवन का अंतिम पड़ाव छूते हैं, तो उनके शरीर को श्मशान के किनारे नदी में बहा दिया जाता है या फिर खुले में छोड़ दिया जाता है. उनका मानना है कि शरीर प्रकृति का हिस्सा है और प्रकृति ही उसका सही उपयोग करेगी — चाहे वह पक्षियों, जानवरों या प्रकृति की अन्य शक्तियों के माध्यम से हो.

अघोरियों का रहस्यमयी अंतिम संस्कार

कुछ मामलों में, अघोरी गुरु या उनके शिष्य मृत शरीर को श्मशान की चिता पर बिना विधिवत जलाए छोड़ देते हैं ताकि वह धीरे-धीरे गल जाए या जलकर खुद-ब-खुद पंचतत्व में विलीन हो जाए. उनका यह दृष्टिकोण मृत्यु के प्रति भय को नकारता है और जीवन-मृत्यु के चक्र को सहज स्वीकार करने की ओर इशारा करता है.

अघोरियों की साधना का केंद्र ही मृत्यु

अघोरियों की साधना का केंद्र ही मृत्यु है, इसलिए वे श्मशान को पवित्र स्थान मानते हैं और अंतिम संस्कार को एक आध्यात्मिक प्रक्रिया rather than a social ritual मानते हैं. उनके लिए मृत्यु कोई अंत नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा का एक चरण है.

समाज के लिए विचलित कर देने वाली

यह प्रक्रिया आम समाज के लिए विचलित कर देने वाली हो सकती है, लेकिन अघोरियों के लिए यह उनकी गहन साधना और प्रकृति से एकाकार होने का प्रतीक है. वे इस बात में विश्वास रखते हैं कि जब जीवन ही मोह-माया से परे था, तो मृत्यु भी उसी मार्ग से होनी चाहिए — मुक्त और निर्बंध.

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17 April 2025, 03:23 PM IST

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