ॐ लोक आश्रम: जितेन्द्रिय क्या फिर कामनाओं से घिर सकता है?
ध्यान का महत्व हम सबको पता है, हम सारे कोशिश भी करते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि हमारा ध्यान लग जाता है और कभी ऐसा होता है कि हमारा ध्यान नहीं लगता।
हाइलाइट
- ॐ लोक आश्रम: जितेन्द्रिय क्या फिर कामनाओं से घिर सकता है?
ध्यान का महत्व हम सबको पता है, हम सारे कोशिश भी करते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि हमारा ध्यान लग जाता है और कभी ऐसा होता है कि हमारा ध्यान नहीं लगता। कई लोग ऐसे हैं जिनका ध्यान लगता है और कभी कभी उनको ऐसा लगता है कि ब्रह्म साक्षात्कार हो गया। उन्होंने अपनी सारी इच्छाओं पर साऱी कामनाओं पर विजय प्राप्त कर ली है और कभी कभी उनको लगता है कि कुछ दिन बाद वो फिर वासनाओं में फंस गए हैं। प्रश्न ये है कि क्या ऐसा हो सकता है। जो व्यक्ति जितेन्द्रिय हो गया हो जो अपनी कामनाओं में विजय प्राप्त कर ली हो क्या फिर वो कभी फिर अपनी कामनाओं में फंस सकता है।
अगर आपने एक बार इन्द्रियों को जीत लिया तो क्या आप काम, क्रोध, लोभ, मोह में दोबारा गिर सकते हो। कई बार ऐसा देखा गया है कि बहुत सारे ऋषि मुनि हुए हैं जिन्होंने तपस्याएं की हैं लेकिन अप्सराएं आईं तो अप्सराओं के साथ हो गए। तो क्या वो सिद्ध पुरुष थे. क्या उन्होंने काम, क्रोध, लोभ, मोह को जीत लिया था. क्या उन्होंने इन्द्रियों पर विजय प्राप्त की थी। भगवान कृष्ण कहते हैं कि जब व्यक्ति अपनी सारी इन्द्रियों को वश में कर लेता है और काम, क्रोध, लोभ, मोह को जीत लेता है। उसके बाद वो कभी गिर नहीं सकता उस स्थिति से। इसको प्राप्त करने के बाद व्यक्ति कभी मोह में नहीं फंसता।
अगर कोई व्यक्ति कह रहा है कि उसने ब्रह्म साक्षात्कार कर लिया है उसे लग रहा है कि वो समाधि की अवस्था में पहुंच गया है और कुछ समय बाद ऐसा है कि अब उसे लग रहा है कि वो समाधि की अवस्था नहीं पहुंच रहा है तो आप ये मान लीजिए कि ये उसका भ्रम है। वो समाधि की अवस्था नहीं है वो ब्रह्म साक्षात्कार की अवस्था नहीं है। किसी व्यक्ति को अगर लग रहा है कि मैंने अनपी इच्छाओं पर बहुत नियंत्रण किया था, पूरी इच्छाएं हमारे नियंत्रण में थीं, इन्द्रियां मेरे वश में थी फिर किस तरह से मैं गलत काम में लग गया, किस तरह से मैं अपनी वासनाओं के अधीन हो गया तो ये आप मानकर कर चलों कि ये आपका भ्रम था कि इन्द्रियां आपके वश में थी।
आपको आपकी ही बुद्धि ने ऐसा धोखा दिया है कि आपको ये आभास कराया कि आप इन्द्रियों के स्वामी हो। यह हमारे सबके साथ होता है। हमारा ये अहंकार ही है जो इतना बड़ा होता है कि वो हमारे सारे व्यक्तित्व पर छा जाता है। जब हम मेडटेशन करते हैं, साधना करते हैं, प्राणायाम करते हैं तो हम धीरे-धीरे शास्त्रों को पढ़ने के बाद, सत्संग के बाद लोगों से जो सम्मान मिलता है उस सम्मान को पाने के बाद हमें ऐसा लगता है कि जैसे हमने बहुत बड़ा कोई काम कर लिया है हमने युद्ध जीत लिया है और ये हमारा अहंकार हमारे आगे एक ऐसा आवरण बना देता है, एक ऐसा पर्दा बना देता है कि हम उसमें चले जाते हैं।