ॐ लोक आश्रम: जितेन्द्रिय क्या फिर कामनाओं से घिर सकता है? भाग-2

हम अपने आपको जितेन्द्रिय मानने लगते हैं। हम अपने आप को काम, क्रोध, लोभ, मोह इन सबका विजेता मानने लगते हैं और एक दिन ऐसा आता है कि हम कुछ ऐसा कर बैठते हैं कि हम अपनी नजरों में गिर जाते हैं तो ये मानिए कि आप कभी सिद्ध पुरुष नहीं थे।

हाइलाइट

  • ॐ लोक आश्रम: जितेन्द्रिय क्या फिर कामनाओं से घिर सकता है? भाग-2

हम अपने आपको जितेन्द्रिय मानने लगते हैं। हम अपने आप को काम, क्रोध, लोभ, मोह इन सबका विजेता मानने लगते हैं और एक दिन ऐसा आता है कि हम कुछ ऐसा कर बैठते हैं कि हम अपनी नजरों में गिर जाते हैं तो ये मानिए कि आप कभी सिद्ध पुरुष नहीं थे। ये आपकी बुद्धि का एक आवरण आपके सामने था जिसको बुद्धि ने रचा हुआ था। वस्तुत: आपने न कभी ब्रह्म साक्षात्कार किया और न कभी आपने इन्द्रियों पर नियंत्रण किया। अगर वास्तव में आपने इन्द्रियों पर नियंत्रण कर लिया है तो कभी आपके मन में विचार ही नहीं आएगा कि आपने इन्द्रियों पर नियंत्रण कर लिया है बस हो गया। जब हमारी ये इन्द्रियां अन्तर्मुखी हो जाती हैं तो हमारी ये प्रवृत्ति हो जाती है कि हम किसी गलत रास्ते पर न निकल जाएं।

भगवान बुद्ध को जब बुद्धत्व प्राप्त हुआ उसके बाद जब वो अपने राज्य लौटे तो उनके परिवार वाले के साथ-साथ राज्य की पूरी प्रजा चाह रही थी कि बुद्ध आएं और अपना राज्य स्वीकार करें लेकिन वे एक ऐसी अवस्था में पहुंच चुके थे जहां से राज-काज, काम, क्रोध, लोभ, मोह कोई इच्छा उनकी अतृप्त बची ही नहीं थी। कुछ करने को उनको था ही नहीं। लोक कल्याण के अलावा, जनता के काम के अलावा और कोई उनके पास कार्य नहीं था। यही अवस्था ब्रह्म ज्ञान के बाद की होती है। जो व्यक्ति वहां तक पहुंच जाता है वहां से वो गिरता नहीं है। इसलिए प्रभु को अच्युत कहा गया है क्योंकि वो सद्गुणों के उस स्तर पर होते हैं जहां से गिरना संभव ही नहीं है। अगर किसी ने एक बार ब्रह्म साक्षात्कार कर लिया तो वो हमेशा ही ब्रह्म साक्षात्कार किया हुआ है चौबीसो घंटे किया हुआ है। जो ब्रह्म है जो ज्ञान है जो आत्म ज्ञान है वो हमारी आत्मा का स्वरूप है।

जब उसको हम एक बार प्राप्त कर लेते हैं हमें ज्ञान हो जाता है कि जिस हार को मैं ढूंढ़ रहा था वो मेरे गले में ही है तो दोबारा वो गुमता नहीं है। वो गुमा हुआ था ही नहीं। भगवान कृष्ण कह रहे हैं कि अगर किसी को यह गलतफहमी हो गई कि इस अवस्था में जाने से व्यक्ति इस अवस्था से परे जा सकता है, अच्युत हो सकता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह इत्यादि को जीतने के बाद फिर व्यक्ति इनके वश में आ सकता है तो ऐसी बात नहीं है। यह एक ऐसी अवस्था है कि जो मिलने के बाद कभी नहीं बिछुड़ती और सतत नित्य हमेशा रहने वाली अवस्था है।

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13 April 2023, 04:51 PM IST

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