ॐ लोक आश्रम: हमें शांति कैसे मिले? भाग-1
आजकल का जीवन बहुत गतिशील हो गया है, तेज हो गया है, भाग-दौड़ वाला हो गया है, क्षण-क्षण बहुत सारे परिवर्तन हैं। हर चीज हर पल बदल रही है। रफ्तार जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है।
हाइलाइट
- ॐ लोक आश्रम: हमें शांति कैसे मिले? भाग-1
आजकल का जीवन बहुत गतिशील हो गया है, तेज हो गया है, भाग-दौड़ वाला हो गया है, क्षण-क्षण बहुत सारे परिवर्तन हैं। हर चीज हर पल बदल रही है। रफ्तार जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। जिसे देखो वो भाग ही रहा है। किसी के पास फुर्सत नहीं है। हर कोई गतिशील और गतिमान है। सफलता की प्राप्ति के लिए बहुत सारा परिश्रम करना है। बहुत मेहनत करनी है। जीवन में जल्दी आगे बढ़ने की इच्छा है। जीवन में आगे जाने की इच्छा है।
सोशल मीडिया आ गया है उसने परिवर्तन को और तेजी से बढ़ा दिया है। हमारे जीवन से शांति कहीं गायब हो गई है। सुख कहीं खो गया है। जब हम बच्चे होते हैं, तरुण होते हैं, जवान होते हैं तो हमें शांति की खोज नहीं होती लेकिन जब हम जीवन के एक मुकान पर पहुंचते हैं, जब हम सफलता प्राप्त कर लेते हैं और पीछे मुड़कर देखते हैं, अपने आसपास देखते हैं तो हमें एक कमी का अहसास होता है। ऐसा लगता है कि हमसे कुछ चूक रहा है या हमसे कुछ छूट गया है। हमें लगता है कि हमने कुछ चीजें तो पा लीं लेकिन बहुत ऐसी चीज थी जो हमसे बिछड़ गई। क्यों शांति नहीं मिलती हमें।
अर्जुन दुनिया के सर्वश्रेष्ठ योद्धा हैं। राजा के भाई हैं या यों कहें कि स्वयं राजा ही हैं। भगवान कृष्ण के मित्र हैं फिर भी अशांत हैं। शांति कैसे मिले किस तरह से व्यक्ति शांत हो। हम किस तरह का जीवन जिएं कि हम कार्य भी करते रहें, सफल भी होते रहें कभी असफल भी हों लेकिन अंदर से हम शांत बने रहें। हमारा चित्त शांत रहे हमारा चित्त आनंदित रहे, प्रसन्नचित्त रहे।
भगवान कृष्ण शांति के बारे में कहते हैं कि सारी नदियां समुद्र में मिलती है कितना पानी लेकर बहती हैं फिर भी समुद्र में बाढ़ नहीं आती। जिस तरह समुद्र में सारा पानी प्रवेश करता है समुद्र में बाढ़ नहीं आती। उसी तरह से किसी व्यक्ति के अंदर सारी कामनाएं प्रवेश कर जाएं लेकिन व्यक्ति का चित्त विचलित न हो उसी व्यक्ति को शांति मिलती है। हमारे अंदर जब भी कोई इच्छा उत्पन्न होती है तो हमारे चित्त को विचलित कर देती है।