ॐ लोक आश्रम: हमें शांति कैसे मिले भाग-2

आजकल का जीवन बहुत गतिशील हो गया है, तेज हो गया है, भाग-दौड़ वाला हो गया है, क्षण-क्षण बहुत सारे परिवर्तन हैं। हर चीज हर पल बदल रही है। रफ्तार जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है।

calender

ॐ लोक आश्रम: चाहे इच्छा कोई भी हो, अच्छा पद पाने की इच्छा हो, अच्छा मकान खरीदने की इच्छा हो। जब भी हम किसी अच्छी चीज को देखते हैं और उसको पाने की इच्छा करते हैं तो धीरे-धीरे वो इच्छा हमारे अंदर बलवती होने लगती है और हमारा चित्त मचल जाता है उस चीज को पाने के लिए। हम बहुत सारे प्रयत्न करते हैं और फिर जब वो चीज मिलती है तब हमें बहुत खुशी होती है और वो नहीं मिलती है तो हमें बहुत दुख होता है।

जब मिल जाती है तो कुछ समय बाद हम उससे बड़ी चीज की इच्छा रखने लगते हैं और फिर वही पुरानी चीज हमें उसके सामने छोटी दिखाई देने लगती है। हम दूसरे लक्ष्य में भाग जाते हैं या तो वो बहुत बड़ा लक्ष्य होता है और फिर उस लक्ष्य को छूटने का डर लगने लगता है और हम मोह से चिपक जाते हैं। दोनों स्थितियां बड़ी विकट होती हैं। भगवान कृष्ण कहते हैं कि अपना चित्त इस तरह रखो कि बाहर से कोई चीज आ जाए तो वो तुम्हें ज्यादा खुशी दे और न उसके चले जाने का भय हो। जो व्यक्ति जीवन में कोई इच्छा नहीं करता।

सभी कामनाओं को छोड़कर अपना कर्तव्य करता रहता है। न तो कोई अहंकार के उसके मन में और न तो कोई ममत्व है ऐसा व्यक्ति शांति को प्राप्त होता है। भगवान कृष्ण ने इसको आदर्श अवस्था कहा है। इस तरह से हमें कोशिश करनी चाहिए, इस तरह से हमें काम करना चाहिए कि हम जीवन बहुत सारी इच्छाएं और कामनाएं न पालें। हम अपने जीवन के  इतने बड़े लक्ष्य न बना लें कि वहां तक पहुंचना ही मुश्किल हो जाए। जीवन में हमें आगे बढ़ना हो तो हमें क्रमिक लक्ष्य बनाने चाहिए। अगर हम पैसा कमाना चाहते हैं और आज ही हम अगर सोच लें कि हमें हजार करोड़ रुपये कमाने हैं तो हम बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे और हो सकता है कि हमारी ये बात कल्पना मात्र ही रह जाएं। लेकिन अगर हम छोटा लक्ष्य रखेंगे, पचास लाख का लक्ष्य रखेंगे फिर एक करोड़ का लक्ष्य रखेंगे फिर आगे बढ़ते ही क्रमिक लक्ष्य रखेंगे तो सफलता की गुंजाइश है। लक्ष्य जीवन में होना चाहिए।

भगवान कृष्ण कहते हैं कि फल की इच्छा से प्रेरित होकर काम न करो लेकिन जीवन में लक्ष्य होने चाहिए। लक्ष्य बनाने के बाद आपका ध्यान कर्मों में होना चाहिए। आप ममत्व को त्याग कर अपने कर्मों पर ध्यान दो। कर्म करो और लक्ष्य की ओर धीरे-धीरे बढ़ते रहो। जितना ज्यादा आप परिणामों से चिपकोगे, जितना ज्यादा आप इच्छा करोगे, जितनी ज्यादा आप लालच करोगे, जितनी ज्यादा आप कामनाएं करोगे उतना ही ज्यादा आपका चित्त अशांत होगा। अगर शांति की अवस्था चाहते हो तो सारी कामनाओं को, सारी इच्छाओं को, सारे अहंकार को त्याग दो। जितना ज्यादा इनका त्याग करोगे उतनी ही शांति मिलेगी और जब जीवन शांत रहेगा तब बाकी चीजें अपने आप आएंगीं। First Updated : Tuesday, 11 April 2023

Topics :