ॐ लोक आश्रम: लोग आत्महत्या जैसा कदम क्यों उठाते हैं? भाग-7

आत्महत्या सारे समाज में, सारे संसार में निंदित है। जीवन की शुरुआत के साथ ही सबसे पहली प्रवृत्ति जो जीव के अंदर आती है वह जीवन की रक्षा की प्रवृत्ति। चाहे वो एक सेल का प्राणी अमीबा हो चाहे वह वायरस ही हो।

हाइलाइट

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जो मूल्यों का क्षरण हुआ है जो विकास को हमने पैसों से जोड़ दिया है। ये समाज का ही कृत्य है। समाज इसी चीज की प्रशंसा कर रहा है। जिन गुणों की समाज प्रशंसा करता है एक छोटा बच्चा उन्हीं गुणों को आगे बढ़ा देता है। जिन आदर्शों को लेकर समाज चलता है बच्चा वही चाहता है और वही काम करने लगता है। आज समाज ने पैसों को आदर्श बना दिया है। आज समाज ने सुख सुविधाओं को आदर्श बना दिया है। भोग को आदर्श बना दिया है। उनके अदंर व्यक्ति पड़कर बाकी चीजों को भूल जाता है।

हमें विकास को फिर से समझना पड़ेगा कि विकास क्या है। जीवन में हम क्या चाहते हैं हम क्यों पैदा हुए हैं। इन 70-80 सालों में जब हम इस संसार में रहेंगे क्या प्राप्त करना है हमें। हमारे जीवन का क्या लक्ष्य है ये जबतक स्पष्टता हमारे सामने नहीं रहेगी तबतक हम सही और गलत का चुनाव नहीं कर पाएंगे। हम पता ही नहीं कर पाएंगे कि हमारा उत्तरदायित्व क्या है। कभी न कभी व्यक्ति को अकेले में बैठना चाहिए, परिवार के साथ अकेले में बैठना चाहिए और ये विचार करना चाहिए कि हमारे जीवन का क्या लक्ष्य है।

हम इस पृथ्वी पर आए हैं हमारे इतने साल बीत चुके हैं और अब इतने साल बचे हुए हैं इन बचे हुए सालों में क्या काम करना है और क्या करके जाना है हमें। जब ये व्यक्ति विचार करने लगेगा, परिवार विचार करने लगेगा तब ऐसी घटनाएं अपने आप रूक जाएंगी। घटनाएं तो घटती रहेंगी। ऋतुएं बदलती रहती हैं कभी गर्मी होगी कभी ठंड आएगी कभी बरसात होगी। ऋतुएं परिवर्तित होती रहेंगी लेकिन व्यक्ति उसके साथ सामंजस्य बना लेता है और वो सामंजस्य वो किस तरह से बनाता है उसे किस तरह से महसूस करता है ये उस व्यक्ति के ऊपर निर्भर है। ये हमारी मानसिक स्थिति के ऊपर निर्भर है हम किसी घटना को किस रूप में लेते हैं।

घटना को कोई लोग सकारात्मक तो कोई नकारात्मक ले लेते हैं। समाज के प्रति, घटनाओं के प्रति हमारा व्यवहार कैसा है। पूरी भगवदगीता में कृष्ण अर्जुन को यही समझा रहे हैं कि तुम निमित्त मात्र बनो, तुम ये मत सोचो कि इतने लोगों की मैं हत्या करूंगा, इतने लोग मेरे हाथ से मारे जाएंगे जो मरेंगे उनके बीवी-बच्चे अनाथ हो जाएंगे। तुम नहीं मारोगे फिर भी ये मरेंगे। तुम तो निमित्त मात्र हो तुम्हारा कर्तव्य है युद्ध करना। तुम योद्धा हो, तुम क्षत्रिय हो, तुम सेना का नेतृत्व कर रहे हो। इसी तरह से हम अपने जीवन में सोचने लगेंगे कि हमारा काम है कर्म करना और मैं इस पृथ्वी पर एक निमित्त मात्र हूं।

इस तरह के अगर हम विचार करेंगे और इस तरह के विचार हम नहीं कर पाते हमारी क्षमता इतनी नहीं है विचार करने की तो हम एक बात कर लें कि जो भी हम कार्य कर लें प्रभु को समर्पित कर दें। उसके सारे परिणाम प्रभु को समर्पित कर दें और ये मानें कि ईश्वर जैसा आदेश देगा मैं वैसा ही जीवन जीऊंगा। अच्छे परिणाम आएं वो भी प्रभु को समर्पित, बुरे परिणाम आएं वो भी प्रभु को समर्पित। अगर व्यक्ति यही जीवन में उपाय करने लगे, पूजा-पाठ करे न करे कुछ न करे, भगवान को याद कर ले जब भी कोई दुख आए तो वो प्रभु को समर्पित कर दे, कोई बड़ा सुख आए वो भी प्रभु को समर्पति कर दे तो व्यक्ति संकटों से मुक्ति पा लेता है।

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02 April 2023, 05:35 PM IST

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