ॐ लोक आश्रम: हम असफल क्यों होते हैं? भाग-1
संसार में हर व्यक्ति सुखी रहना चाहता है। सुख प्राप्त करना चाहता है। हम जो भी समाज में काम करते हैं, मेहनत करते हैं, हमारा उद्देश्य होता है कि हम ज्यादा से ज्यादा सुखी हों, ज्यादा से ज्यादा संपन्न हों।
हाइलाइट
- ॐ लोक आश्रम: हम असफल क्यों होते हैं? भाग-1
संसार में हर व्यक्ति सुखी रहना चाहता है। सुख प्राप्त करना चाहता है। हम जो भी समाज में काम करते हैं, मेहनत करते हैं, हमारा उद्देश्य होता है कि हम ज्यादा से ज्यादा सुखी हों, ज्यादा से ज्यादा संपन्न हों। लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। हमारे प्रयत्न बहुत बार असफल हो जाते हैं। हम सुखों की तलाश में जाते हैं और बदले में हमें दुख मिलते हैं। कई बार हमारे जीवन में असफलता मिलती है ऐसा क्यों होता है। हम किस तरह से कार्य करें कि हमें असफलता दुखी न करे। हमें दुखों की प्राप्ति न हो।
भगवदगीता इस बारे में क्या कहती है। जीवन में प्रसन्नता किस तरह से मिल सकती है। भगवान कृष्ण कहते हैं कि अगर हमने अपनी इन्द्रियों को अपने वश में कर लिया, जो भी हम काम कर रहे हैं वो राग और द्वेष इन दोनों से मुक्त होकर काम कर रहे हैं तो हम सुखी रहेंगे हमें केवल खुशी मिलेगी। हम किसी को खुश करने के लिए कोई काम कर रहे हैं या फिर किसी को दुखी करने के लिए कोई काम कर रहे हैं। इन दोनों के लिए अगर हम कोई काम कर रहे हैं तो हम दुखी रहेंगे, हमारा परिणाम दुख में निकलेगा। क्योंकि हमारा ध्यान हमारे कर्म कर नहीं होगा हमारा ध्यान होगा हमारे लक्ष्य पर। हम चाहेंगे कि हम इस तरह से काम करें कि सामने वाला खुश हो जाए।
सच्चाई के रास्ते पर चलना है राग और द्वेष से मुक्त होकर काम करना चाहिए चाहे परिणाम कुछ भी हो। केवल अपने कर्तव्य के रास्ते पर चलना होगा। दरअसल सुखों में भार बहुत ज्यादा होता है। सुख की खोज में अगर आप निकलोगे तो आपको दुख ही मिलेगा। एक कथा है कि एक बार कबीरदास जी एक यात्रा पर निकले तो उनके साथ कुछ शिष्य भी साथ चल दिए।
एक शिष्य माणिक्य लेकर आया और उसने कबीरदास से कहा कि आप ये माणिक्य रख लो क्योंकि लंबी यात्रा पर निकल रहे हो न रहने का पता न खाने-पीने का पता। कभी कुछ जरूरत पड़ जाए और कुछ मिले ना। परदेस है लोगों को पता नहीं कि आप कौन हो ऐसे में खाने-पीने की बहुत समस्या होगी ऐसे में जब कुछ न हो तो इसे बेचकर काम चला लेना।