Vat Savitri Vrat: 6 जून को देशभर में ज्येष्ठ मास की अमावस्या है. उस दिन शनि जयंती मनाई जाती है, साथ ही वट सावित्री व्रत भी किया जाता है. ज्येष्ठ अमावस्य पर शनि पूजा के साथ ही बरगद के पेड़ की भी पूजा करने की परंपरा है. ऐसा करने से ईश्वर खुश हो जाते हैं. उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, धर्म कर्म से ज्येष्ठ मास का महत्व काफी ज्यादा है. इस महीने में गर्मी काफी ज्यादा रहती है. ऐसे में किए गए व्रत-उपवास का अक्षय पुण्य मिलता है. अक्षय पुण्य यानी ऐसा पुण्य जिसका असर जीवन भर तक बना रहता है. इस मास में गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी जैसे व्रत-पर्व भी आते हैं, जो हमें पानी का महत्व समझाते हैं.
नौ ग्रहों में शनि देव को न्यायाधीश माना गया है. शनि सूर्य देव के पुत्र हैं. यमराज, यमुना शनि देव के सौतेले भाई-बहन हैं. माना जाता है कि ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर शनि देव का जन्म हुआ था. शनि जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके सूर्य को अर्घ्य अर्पित करें. इसके बाद किसी शनि मंदिर जाएं और शनि देव का सरसों के तेल से अभिषेक करें. नीले-काले वस्त्र शनि देव को चढ़ाएं इसके साथ ही नीले फूल, काले तिल अर्पित करें. ऊँ शं शनैश्चराय नम: मंत्र का जप करते हुए धूप-दीप जलाएं और आरती करें. जरूरतमंद लोगों को तेल का दान करें. इसके साथ ही छाता, जूते-चप्पल, वस्त्र, अनाज का दान भी कर सकते हैं.
महिलाओं के लिए वट सावित्रि व्रत महाव्रत की तरह है माना जाता है. इसके पीछे की वजह ये है कि पराने समय में इसी तिथि पर सावित्री ने पति सत्यवान के प्राण यमराज से बचाए थे. वट सावित्रि व्रत महिलाएं अपने पति के सौभाग्य, लंबे जीवन और अच्छी सेहत की कामना से करती हैं. इस व्रत को करने के बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है और शिव-पार्वती का विशेष अभिषेक किया जाता है. जो महिलाएं ये व्रत करती हैं, वे सावित्री, सत्यवान और यमराज की कथा पढ़ती-सुनती हैं.