Pohela Boishakh 2025: कैसे मनाया जाता है बंगाली नववर्ष? जानें इसका महत्व और इतिहास
Pohela Boishakh 2025: आज 15 अप्रैल को पूरे उत्साह और पारंपरिक अंदाज़ में पोइला बोइशाख यानी बंगाली नववर्ष मनाया जा रहा है. यह दिन बंगाली पंचांग के अनुसार नए साल की शुरुआत का प्रतीक है और इसे खुशहाली, नए आरंभ और सांस्कृतिक एकता के रूप में मनाया जाता है.

Pohela Boishakh 2025: भारत में नववर्ष केवल 1 जनवरी को ही नहीं, बल्कि अलग-अलग समुदायों में अलग-अलग तिथियों पर नई शुरुआत का पर्व मनाया जाता है. ऐसा ही एक खास पर्व है 'पोइला बोइशाख', जिसे बंगाली नववर्ष के रूप में जाना जाता है. यह दिन बंगाली संस्कृति और परंपराओं के रंगों से भरपूर होता है और हर वर्ष अप्रैल के मध्य में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.
15 अप्रैल 2025 को यानी आज, बंगाली समुदाय पूरे उत्साह के साथ नया साल मना रहा है. यह दिन न सिर्फ एक नए साल की शुरुआत है, बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव भी है, जिसमें पारंपरिक खान-पान, गीत-संगीत, पूजा-पाठ और मेलों का आयोजन किया जाता है. आइए जानें पोइला बोइशाख का इतिहास, महत्व और इसे मनाने की पारंपरिक विधियां.
क्या है पोइला बोइशाख?
पोइला बोइशाख बंगाली पंचांग का पहला दिन होता है और यही बंगाली नववर्ष की शुरुआत मानी जाती है. पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश, त्रिपुरा और असम के बाराक घाटी क्षेत्र में यह दिन एक सांस्कृतिक उत्सव का रूप ले लेता है. इस दिन लोग आपस में शुभो नोबोबर्षो कहकर एक-दूसरे को नए साल की शुभकामनाएं देते हैं.
पारंपरिक अंदाज में होती है दिन की शुरुआत
इस खास मौके पर बंगाली परिवार अपने घरों की सफाई करते हैं, नए कपड़े पहनते हैं और लक्ष्मी-गणेश की पूजा करते हैं. सुबह से ही पारंपरिक व्यंजन जैसे इलीश माछ (हिलसा मछली), पुलाव, मिष्टी दोई (मीठा दही), संदेश आदि पकाए जाते हैं. बाजारों और दुकानों में हालखाता की परंपरा निभाई जाती है, जिसमें पुराने खाते बंद कर नए खाता खोले जाते हैं और मिठाइयों के साथ ग्राहक और व्यापारियों के रिश्ते की नई शुरुआत होती है.
सांस्कृतिक कार्यक्रमों से सजता है बंगाली नववर्ष
पोइला बोइशाख पर जगह-जगह रवींद्र संगीत गाया जाता है, लोकगीतों और पारंपरिक नृत्यों का आयोजन होता है, और मेलों की रौनक से गलियां जगमगाने लगती हैं. यह दिन केवल एक पर्व नहीं, बल्कि बंगाली पहचान, संस्कृति और समुदाय का उत्सव है.
पोइला बोइशाख का ऐतिहासिक महत्व
इतिहास की बात करें तो यह त्योहार मुगल सम्राट अकबर के समय से चला आ रहा है. अकबर ने कर संग्रह को आसान बनाने के लिए स्थानीय मौसम और फसलों के अनुसार बंगाली कैलेंडर की शुरुआत की थी. धीरे-धीरे यह परंपरा ग्रामीण संस्कृति का हिस्सा बन गई और आज भी लोगों के जीवन में नयापन, आशा और सौहार्द का प्रतीक बनी हुई है.
जानें इस वर्ष का शुभ मुहूर्त
द्रिक पंचांग के अनुसार, इस साल का संक्रांति काल 14 अप्रैल को सुबह 3:30 बजे शुरू हुआ, लेकिन बंगाली नववर्ष 15 अप्रैल 2025, मंगलवार को मनाया जा रहा है. यही दिन नववर्ष के रूप में पूजा, सांस्कृतिक आयोजन और पारिवारिक मेल-मिलाप के लिए सबसे शुभ माना गया है.