Ramadan 2023: पाकीजगी के साथ अल्लाह की इबादत करने की सीख देता है ये 22वां रोजा
Ramadan 2023: मजहब में कोई न कोई रात या कुछ खास बातें इबादत के लिए मख्सूस होती है। हर मजहब की इबादत का अपनी ही एक अलग ढंग होता है।इसके साथ ही माहे रमजान को मजहबे-इस्लाम में खास मुकाम हासिल है।
हाइलाइट
- मजहब में कोई न कोई रात या कुछ खास बातें इबादत के लिए मख्सूस होती है।
Ramadan 2023: रमजान में अल्लाह ने अपने बंदों को रोजा रखने के लिए सब्र की ताकत अता की है। इस महीने हो सके, तो अल्लाह की बंदगी में ही बसर करें। अल्लाह की इबादत ही तो है, जो इंसान के मरने के बाद उसके साथ जाती है। हर मजहब की इबादत का अपना ही एक अलग ढंग होता है इसके अलावा हर मजहब में ऐसी कोई न कोई रात या कुछ खास बातें इबादत के लिए मख्सूसू होती हैं।
जिनकी अपनी अहमियत होती है,मिसाल के तौर पर सनातम धर्म में भगवती जागरण, नवरात्र जागरण, जैन धर्म में खास यानी विशिष्ट तप-आराधना (इबादत) सिख धर्म में एक ओंकार सतनाम का जाप, ईसाई मजहब में भी स्पिरिचुअल नाइट्स फॉर स्पिरिचुअल अवेकानिंग एंड अवेयरनेस के अपने लम्हात होते हैं जो हॉली फास्टिंग या पायस मोमेन्ट्स से जुड़े रहते हैं।
दरअसल दोजख की आग से निजात का यह अशरा जिसमें रात में की गई इबादत की खास अहमियत है। इक्कीसवीं रात (जब बीसवां रोजा इफ्तार लिया जाता है) से ही शुरु हो जाता है।दस रातें-नौ दिन होते हैं, मगर उन्तीसवें रोजे वाली शाम को ही चांद नजर आ जाए तो नौ रातें-नौ दिन होते हैं। इस अशरे में इक्कीसवीं रात जिसे ताक़ रात कहते हैं नमाज़ी एतेक़ाफ़ करता है।
मोहल्ले में एक शख्स भी एतेक़ाफ़ करता है, तो किफ़ाया के कारण पूरे मोहल्ले का हो जाता है। दरअसल अल्लाह को पुकारने का तरीका और आख़िरत को संवारने का सलीक़ा रमजान है।
माहे रमजान को मज़हबे-इस्लाम में खास मुकाम हासिल है। पाकीज़गी औरप परहेज़गारी की पाबंदी के साथ रखा गया रोजा रोजेदार को इबादत की अलग ही लज्ज़त देता है।