महाकुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि इसमें मौजूद अखाड़े सनातन धर्म की 'फौज' के रूप में माने जाते हैं. इन अखाड़ों का हिस्सा बनने के लिए कड़ी प्रक्रिया और प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है. सन्यासियों को शस्त्र और शास्त्र की ट्रेनिंग दी जाती है, और केवल संतुष्ट होने के बाद ही उन्हें दीक्षा मिलती है. अखाड़ों में प्रवेश के लिए कई कड़े नियमों और जांच प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है.
आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में अखाड़ों की स्थापना की थी, जिनका उद्देश्य धार्मिक कार्यों को बढ़ावा देना और सनातन धर्म की रक्षा करना था. समय के साथ इनकी संख्या बढ़कर 13 हो गई, जो शैव, वैष्णव और उदासीन संप्रदायों में बंटे हुए हैं.
अखाड़े किसी भी सन्यासी को अपनी सदस्यता देने से पहले एक कठिन प्रक्रिया से गुजरवाते हैं. नए सन्यासियों को 10 साल तक भी इंतजार करना पड़ सकता है. इस प्रक्रिया में आधार कार्ड, वोटर आईडी, गारंटर और गोपनीय जांच शामिल होती है. संतुष्ट होने के बाद ही उन्हें नागा सन्यासी की दीक्षा दी जाती है.
अखाड़ों का गठन सेना जैसा होता है, जहां नागा सन्यासियों को शस्त्र और शास्त्र दोनों की ट्रेनिंग दी जाती है. उनकी ट्रेनिंग का उद्देश्य धर्म की रक्षा करना है. कुछ सन्यासी शास्त्रों में माहिर होते हैं, जबकि कुछ शास्त्रों के ज्ञान में निपुण होते हैं. नागा सन्यासी युद्धक ट्रेनिंग लेते हैं और हमेशा अपने साथ एक हथियार रखते हैं, जिसका उपयोग धर्म की रक्षा के लिए ही किया जाता है.
आपराधिक छवि वाले व्यक्तियों को रोकने के लिए अखाड़ों ने 2000 के बाद से कड़ी जांच प्रणाली लागू की है. अब अखाड़े नए सन्यासियों की पूरी जानकारी प्राप्त करने के बाद ही उन्हें अपनी शरण में लेते हैं. यह प्रक्रिया अखाड़ों को सुरक्षित और सम्मानजनक बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है.
महाकुंभ 2025 में इन अखाड़ों का योगदान और उनकी भूमिका विशेष रूप से देखने लायक होगी, क्योंकि ये न केवल धर्म की रक्षा करते हैं, बल्कि समाज में जागरूकता भी फैलाते हैं. First Updated : Wednesday, 15 January 2025