दीपावली पर क्यों होती है उल्लुओं की बलि? जानें मान्यता और कीमत
Sacrifice Of Owl On Diwali: भारत में कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं. ऐसी ही एक मान्यता है दिवाली के मौके पर उल्लू की बलि देने को लेकर आइये जानें इसके पीछे के क्या कारण हैं और उल्लू की इस समय में क्या कीमत होती है?
Sacrifice Of Owl On Diwali: हिंदू मान्यताओं के अनुसार, उल्लू एक विशेष स्थान रखता है. इसका रात्रिचर, अकेला और तेज आवाज में बोलना इसे एक अलग पहचान देता है. उल्लू को अक्सर 'अलक्ष्मी' से जोड़ा जाता है, जो कि अशुभता की देवी मानी जाती हैं और जिन्हें पिछले जन्मों के अनसुलझे कर्मों के साथ देखा जाता है. भारत में, दीवाली के समय उल्लुओं की मांग बढ़ जाती है और उन्हें अवैध रूप से 10,000 रुपये से 50,000 रुपये तक में बेचा जाता है. दीवाली के दौरान उल्लू की बलि को लक्ष्मी माता की कृपा बनाए रखने का उपाय माना जाता है.
उल्लू की स्थिर और गोल आंखों के कारण इसे बुद्धिमत्ता का प्रतीक माना जाता है. यह मान्यता न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में फैली हुई है. प्राचीन यूनान और एशिया में उल्लू को धन-संपत्ति, समृद्धि और शुभ-अशुभ संकेतों से भी जोड़ा गया है.
पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व
कुछ हिंदू मान्यताओं के अनुसार, लक्ष्मी देवी का वाहन उल्लू होता है, वहीं कुछ कहते हैं कि वे हाथी पर सवार होकर उल्लू के साथ आती हैं. विभिन्न पौराणिक कथाओं में उल्लू को लक्ष्मी से जोड़ा गया है, इसलिए दीवाली पर उल्लू का बलिदान करने से देवी लक्ष्मी की कृपा घर पर स्थायी रहती है. ओडिशा के पुरी में इसे 'गोल-आंखों वाला देवता' मानकर पूजा जाता है.
उल्लू और तांत्रिक साधना
पौराणिक ग्रंथों में उल्लू को तांत्रिक साधना में महत्वपूर्ण माना गया है. एक प्रमुख कथा में राजा दक्ष ने हरिद्वार में यज्ञ किया लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया. इसपर भगवान विष्णु ने ब्राह्मणों को शिक्षा से वंचित कर दिया. इसके समाधान के लिए गौतम ऋषि ने 'उलूक तंत्र' की स्थापना की, जिससे लक्ष्मी और विष्णु ने उनका अभिशाप हटा लिया. तभी से गौतम गोत्र के अनुयायी दीवाली पर उल्लू की पूजा करते हैं.
उल्लू का अवैध व्यापार
वाइल्डलाइफ एसओएस के अनुसार, दिवाली पर विशेष रूप से 'रॉक उल्लू' या 'ईगल उल्लू' की मांग सबसे अधिक होती है. माना जाता है कि ये उल्लू तांत्रिक शक्तियों से युक्त होते हैं, और इन्हें बलिदान करने से सुख-समृद्धि मिलती है. दिवाली से पहले उल्लू को अवैध रूप से 4,000 से 10,000 रुपये में बेचा जाता है. हालांकि उल्लू भारतीय वन्यजीव अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित पक्षी हैं और इसके शिकार पर तीन साल की सजा का प्रावधान है.
तांत्रिक क्रियाओं में उल्लू का उपयोग
उल्लू की बलि के लिए तांत्रिक साधना दीवाली से लगभग एक महीने पहले शुरू होती है. उल्लू को मीट और शराब पिलाकर दिवाली तक साधना के लिए तैयार किया जाता है. दीवाली की रात उल्लू की बलि दी जाती है और उसके शरीर के हिस्सों को अलग-अलग स्थानों पर रखा जाता है. कहा जाता है कि उल्लू की आंखें सम्मोहन शक्ति रखती हैं, इसलिए उन्हें उन जगहों पर रखा जाता है जहां लोग मिलते हैं. इसके पैर तिजोरी में रखे जाते हैं.