कब है संतान सप्तमी का व्रत? जानिए पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व
Santana Saptami: संतान सप्तमी भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा और व्रत का दिन है. अगर इस व्रत को पूरी सावधानी और आस्था के साथ किया जाए तो इससे व्रती को स्वस्थ और भाग्यशाली संतान की प्राप्ति होती है. इस व्रत को करने से बच्चे के जीवन से सभी दुख दूर हो जाते हैं. तो चलिए इस व्रत के बारे में सबकुछ जानते हैं.
Santana Saptami: हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को संतान सप्तमी का व्रत रखा जाता है. इस व्रत को महिला दोनों ही इस व्रत को कर सकते हैं. इस व्रत को ज्यादातर गर्भवती महिलाएं रखती है ताकि उनके बच्चे स्वस्थ पैदा हो. कुल मिलाकर, यह व्रत संतान प्राप्ति, सुरक्षा और बच्चों की प्रगति के तीन गुना लाभ के लिए किया जाता है.
वैदिक पंचांग के अनुसार संतान सप्तमी का व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रखा जाता है. इस बार ये व्रत 10 सितंबर को मनाई जाएगी. तो चलिए इस व्रत का महत्व और पूजा विधि जानते हैं. साथ ही इस व्रत को करने से क्या-क्या लाभ मिलता है चलिए जानते हैं.
संतान सप्तमी शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद की सप्तमी तिथि 9 सितंबर को रात 9 बजकर 53 मिनट पर शुरू होगी. वहीं इसका समापन 10 सितंबर को रात 11 बजकर 11 मिनट पर होगा. संतान सप्तमी 10 सितंबर 2024, दिन मंगलवार को मनाई जाएगी. ऐसे में जो लोग भी इस व्रत को रखना चाहते हैं तो वे 10 सितंबर को ही व्रत रखें.
संतान सप्तमी का महत्व
ये व्रत हर वर्ष भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष के सप्तमी तिथि के दिन रखा जाता है. इस साल सप्तमी तिथि 10 सितंबर को पड़ रही है. भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 9 सितंबर को रात 9 बजकर 53 मिनट पर शुरू होगी जो अगले दिन 10 सितंबर को 11 बजकर 11 मिनट पर समाप्त होगा. इस व्रत में भगवान शंकर और माता पार्वती की विधिवत पूजा की जाती है. इस व्रत को स्त्री व पुरुष दोनों ही रख सकते हैं. संतान सप्तमी के दिन भगवान सूर्य की भी पूजा की जाती है. संतान की सुख-समृद्धि के लिए इस व्रत को सबसे उत्तम माना जाता है.
संतान सप्तमी पूजा विधि
➤ संतान सप्तमी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें.
➤ भगवान शिव और माता पार्वती के समक्ष व्रत और पूजा का संकल्प लें.
➤ माता-पिता को अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए सुबह की शुद्धि की रस्में पूरी करने के तुरंत बाद उपवास शुरू कर देना चाहिए.
➤ व्रत शुरू करने से पहले अपने बच्चे की सुरक्षा का संकल्प लें और फिर भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा करें.
➤ एक वेदी पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर शिव परिवार की एक प्रतिमा स्थापित करें.
➤ देवताओं को गांजे के जल से पवित्र स्नान कराने के बाद मूर्तियों पर चंदन का लेप लगाएं.
➤ एक कलश में जल, सुपारी, अक्षत, एक रुपया का सिक्का डालकर उसमें आम की डालियां रखें, उसमें चावल डालें और उसके ऊपर दीपक जलाएं.
➤ केले के पत्ते पर आटे और चीनी से बने 14 पुए रखने चाहिए. कभी-कभी खीर और पूरी का भी भोग लगाया जाता है.
➤ भोग लगाने से पहले तुलसी के पत्ते को पवित्र जल में भिगोकर भगवान की मूर्ति की ओर घुमाना चाहिए और फिर भोग के अंदर रखना चाहिए.
➤ पंचोपचार विधि पूर्वक फल, फूल, धूप, दीप आदि से करना चाहिए. अब भगवान शिव की मूर्ति पर एक चांदी का धागा बांधना चाहिए, जिसे भगवान की उपस्थिति में दूध और जल से पवित्र करने के बाद बच्चे की दाहिनी कलाई पर बांधना चाहिए.
➤ अब इस आयोजन का समापन करने के लिए व्रत कथा सुनें.
➤ यह पूजा दोपहर 12 बजे के बाद ही शुरू होती है. इसलिए, दोपहर तक व्रत का समापन करना बहुत शुभ और बेहतर होता है.
➤ व्रत कथा सुनने के बाद सात पुए ब्राह्मण को दान करें और शेष सात पुए स्वयं खाकर व्रत खोलें.