Sawan 2023: सावन का क्या है धार्मिक महत्व, कैसे पड़ा महादेव का नाम नीलकंठ

Sawan 2023: सावन का महीना 4 जुलाई (मगंलवार) से शुरू होने जा रहा है. इस बार के सावन में 8 सोमवार आएंगे. तो तो आइए जानते है सावन के इस महीने का विशेष धार्मिक महत्व क्या है.

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Sawan 2023: हिंदू पंचांग के अनुसार सावन का महीना 4 जुलाई (मंगलवार) से शुरू होने जा रहा है. इस बार सावन पर बेहद शुभ संयोग बन रहे है. सावन का महीना भगवान शिव के लिए अत्यंत प्रिय माना जाता है. सावन के महीने को श्रावण के नाम से भी जाना जाता है. यह पूरे देशभर में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस बार का सावन जुलाई के महीने में शुरू होकर अगस्त मे समाप्त होगा. इस बार के सावन में 8 सोमवार होंगे और यह 59 दिनों का रहेगा. साथ ही आपको बता दें कि पहला सावन का सोमवार 10 जुलाई को है. तो आइए जानते है सावन के इस महीने का विशेष धार्मिक महत्व क्या है.

सावन का धार्मिक महत्व:


सावन के महीने में ही इस संसार के पालनहार भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं. ऐसे में सृष्टि का संचालन भगवान शिव द्वारा किया जाता है. साथ यह वह महीना भी है जब समुद्र का मंथन हुआ था और विषपान करने के कारण देवों के देव महादेव को नीलकंठ नाम मिला था. सावन के महीने में ही माता पार्वती ने अपनी कठोर तपस्या से शिव जी को प्रसन्न किया था तथा शिव और शक्ति का मिलन हुआ था. 

अपनी ससुराल आते हैं भोले बाबा:

जैसा कि हमने आपको बताया कि सावन का महीना शिव जी को प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में धरती पर आकर अपने ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्ध्य और गाय के दूध से जलाभिषेक किया गया था. तब से ऐसा माना जाता है कि सावन के माह में भगवान भोलेबाबा अपने ससुराल आते हैं. भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उचित समय रहता है. 

कैसे पड़ा शिव जी का नाम नीलकंठ?


इस संसार के पालनहार शिव जी के अनेकों नाम हैं पर आज महादेव का नाम नीलकंठ कैसे पड़ा ये बताने वाले है. भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाता है, उनका यह नाम क्यों पड़ा ? इसके पीछे का क्या कारण है ?


पौराणिक कथाओं के अनुसार देवासुर संग्राम के समय मंथन से 14 रत्न निकले और इन्हीं रत्नों में कालकूट नाम का एक भयंकर विष निकला. उस विष की अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगीं. इस दौरान सभी प्राणियों में हाहाकार मच गया. देवताओं और दैत्यों सहित ऋषि, मुनि, मनुष्य, गंधर्व और यक्ष आदि उस जहरीला विष की गरमी से जलने लगे. तभी संसार के सभी देवताओं के लिए चिंता का विषय बन गया था. फिर देवताओं की प्रार्थना पर देवों के देव महादेव विषपान करने के लिए तैयार हो गए. 

उन्होंने भयंकर विष को हथेलियों से भरा और भगवान विष्णु का स्मरण कर उसे पी गए. भगवान विष्णु उस विष को शिवजी के कंठ में ही रोक कर उसके प्रभाव के समाप्त कर दिया. विष के कारण शिव का नाम नीलकंठ पड़ गया और वे इस संसार में नीलंकठ के नाम से प्रसिद्ध हुए. 

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव जब विषपान कर रहे थे तो उस समय विष की कुछ बूंदे नीचे गिर गई. जिन्हें बिच्छू, सांप आदि जहरीले जीवों और कुछ वनस्पतियों ने ग्रहण कर लिया था. जिस कारण वह विषैले हो गए. First Updated : Sunday, 02 July 2023