शब-ए-कद्र: इस्लाम की सबसे पाक रात, जिसमें हर दुआ होती है कुबूल, जानें इसका धार्मिक महत्व
Shab-e-Qadr: शब-ए-कद्र इस्लाम में सबसे मुकद्दस रातों में से एक मानी जाती है. इसे रात-ए-ताक़दीर यानी भाग्य की रात भी कहा जाता है. यह रमजान के आखिरी अशरे की विषम रातों में से एक होती है, जिसे हजार महीनों से बेहतर बताया गया है. इस रात में अल्लाह अपने बंदों की दुआएं कबूल करते हैं और उनके गुनाह माफ कर देते हैं.

Shab-e-Qadr: इस्लाम धर्म में कुछ रातों को बेहद खास माना गया है, जिन्हें ‘मुकद्दस रातें’ कहा जाता है. इन्हीं में से एक है शब-ए-कद्र, जिसे भाग्य, इबादत और बरकत की रात माना जाता है. रमजान के आखिरी अशरे (आखिरी दस दिनों) में पड़ने वाली यह रात हर मुसलमान के लिए बेहद अहम होती है. इस्लामिक मान्यता के अनुसार, इसी पवित्र रात में अल्लाह ने फरिश्ते जिब्रील के जरिए पैगंबर मुहम्मद पर पहली बार कुरान शरीफ की आयतें उतारी थीं. इस रात की इबादत हजार महीनों की इबादत से ज्यादा अफजल मानी जाती है.
इस्लाम की चार मुकद्दस रातें कौन-सी हैं?
इस्लाम में चार रातें खास अहमियत रखती हैं, जिन्हें रहमत और बरकत से भरपूर माना गया है.
1. आशूरा की रात (मुहर्रम की 10वीं रात)
2. शब-ए-मेराज (जब पैगंबर मुहम्मद अल्लाह से मिलने आसमानों पर गए)
3. शब-ए-बारात (गुनाहों की माफी और तकदीर लिखी जाने वाली रात)
4. शब-ए-कद्र (जिसे हजार महीनों से अफजल कहा गया है)
शब-ए-कद्र की तारीख कब होती है?
रमजान के आखिरी दस दिनों की 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं या 29वीं रात में से कोई एक शब-ए-कद्र होती है. हालांकि, अधिकतर इस्लामिक विद्वान 27वीं रात को ही शब-ए-कद्र मानते हैं और इसी दिन सबसे ज्यादा इबादत की जाती है.
शब-ए-कद्र को किन नामों से जाना जाता है?
इस मुकद्दस रात को कई नामों से पुकारा जाता है—
- अरबी: लैलातुल कद्र
- अंग्रेजी: नाइट ऑफ डिक्री, नाइट ऑफ पावर, नाइट ऑफ वैल्यू
- हिंदी: भाग्य की रात, मुकद्दस रात, पवित्र रात
शब-ए-कद्र की रात इबादत का महत्व
इस रात को इबादत करने से इंसान के गुनाह माफ हो जाते हैं, उसकी दुआएं कबूल होती हैं और अल्लाह की रहमत बरसती है. मुसलमान इस रात को खासतौर पर—
- तरावीह की नमाज पढ़ते हैं
- तहज्जुद की नमाज अदा करते हैं
- कुरान की तिलावत करते हैं
- हदीस और नफ्ल की नमाज अदा करते हैं
शब-ए-कद्र क्यों मानी जाती है खास?
कुरान में इसे हजार महीनों से भी ज्यादा बरकत वाली रात बताया गया है. इसका मतलब है कि अगर कोई इस रात को पूरी शिद्दत और इमानदारी से इबादत करता है, तो उसे 83 साल की इबादत के बराबर सवाब (पुण्य) मिलता है. आपको बता दें कि शब-ए-कद्र सिर्फ इबादत की रात नहीं, बल्कि अपने गुनाहों से माफी मांगने और अल्लाह की रहमत पाने का सुनहरा मौका है. हर मुसलमान को इस रात को इबादत में गुजारना चाहिए, ताकि उसकी दुआएं कबूल हो और जिंदगी में बरकत आए.


