Chhath Puja 2024: बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित एक प्राचीन सूर्य मंदिर को लेकर मान्यता है कि इसका निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने एक ही रात में किया था. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर मनाए जाने वाले छठ महापर्व के दौरान इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. यहां भगवान सूर्यदेव के तीन स्वरूप – प्रातः सूर्य, मध्य सूर्य और अस्त सूर्य – की प्रतिमाएं स्थापित हैं.
इस मंदिर की खासियत यह है कि इसका मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर है, जो इसे और भी विशेष बनाता है. यह मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध और प्राचीन सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है. ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार, इसका निर्माण डेढ़ लाख साल पहले त्रेता युग में हुआ था.
इस पौराणिक मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने मात्र एक रात में किया था. यह मंदिर काले और भूरे पत्थरों से बना है और इसमें किसी प्रकार के गारे या सीमेंट का उपयोग नहीं हुआ है. इसकी संरचना ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर के समान प्रतीत होती है. इसकी ऊंचाई करीब 100 फीट है और इसका वास्तुकला एक अद्भुत उदाहरण है.
मंदिर का निर्माण आयताकार, वर्गाकार, अर्द्धवृत्ताकार, गोलाकार और त्रिभुजाकार पत्थरों से किया गया है. इसकी दीवारों पर उकेरी गई मूर्तियां और डिजाइन अद्वितीय शिल्पकला को दर्शाती हैं. मंदिर के बाहर ब्राह्मी लिपि में लिखे एक शिलालेख में इस मंदिर के निर्माण का जिक्र किया गया है.
इस मंदिर में भगवान सूर्यदेव की तीन प्रतिमाएं स्थापित हैं, जिन्हें उदयाचल (प्रातः सूर्य), मध्याचल (मध्य सूर्य), और अस्ताचल (अस्त सूर्य) के रूप में पूजा जाता है. यह भी माना जाता है कि छठ पूजा की परंपरा की शुरुआत इसी मंदिर से हुई थी, जिससे यह स्थान और भी पवित्र और पूजनीय बनता है.
इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में हुआ था, और मंदिर के बाहर लिखे शिलालेख के अनुसार इसे 1 लाख 50 हजार 19 वर्ष पूरे हो चुके हैं. मंदिर की प्राचीनता और रहस्य आज भी इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के लिए एक बड़ा सवाल बनी हुई है. First Updated : Wednesday, 06 November 2024