Tulsi Vivah 2024: राक्षस कुल में जन्मी वृंदा कैसे बनी तुलसी, जानें कैसे हुआ शालिग्राम तुलसी विवाह?

Tulsi Vivah 2024: हर साल कार्तिक मास की द्वादशी तिथि पर तुलसी विवाह होता है. इस दिन के बाद से ही दोबारा सभी मांगलिक कार्य शुरू होते हैं. आइए जानते हैं कि माता तुलसी से आखिर भगवान विष्णु ने विवाह क्यों किया था?

Dimple Yadav
Dimple Yadav

Tulsi Vivah 2024: सनातन धर्म में तुलसी के पौधे का विशेष महत्व है. इसे भगवान विष्णु की प्रिय मानी जाती है, इसलिए श्री विष्णु की पूजा में तुलसी के पत्ते रखना अनिवार्य होता है. इसके अलावा, एक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु और माता तुलसी का विवाह भी हुआ है, जो कार्तिक मास में खास तौर पर मनाया जाता है.

कार्तिक महीने में भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ अगर तुलसी पूजन किया जाए तो इसे विशेष लाभकारी माना जाता है. इसी महीने में तुलसी विवाह की परंपरा भी है. इस दिन लोग अपने घरों और मंदिरों में माता तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप में करते हैं. इस साल तुलसी विवाह 13 नवंबर को होगा, क्योंकि कार्तिक मास की द्वादशी तिथि 12 नवंबर को शाम 4:02 बजे शुरू हो रही है और 13 नवंबर को दोपहर 1:01 बजे समाप्त होगी.

पौराणिक कथा  

पौराणिक कथा के अनुसार, तुलसी का असली नाम वृंदा था, और वह एक राक्षस परिवार में जन्मी थी. वृंदा का विवाह जालंधर नामक राक्षस से हुआ था, जो समुद्र मंथन से उत्पन्न हुआ था. वृंदा भगवान विष्णु की बहुत बड़ी भक्त और पतिव्रता (पति के प्रति वफादार) थी, जिसके कारण उसके पति जालंधर की शक्ति बढ़ी थी. वह युद्धों में कभी हारता नहीं था, क्योंकि जब भी वह युद्ध में जाता, वृंदा भगवान विष्णु की पूजा करती, और भगवान उसकी इच्छाओं को पूरा करते.

जानें कैसे हुआ शालिग्राम तुलसी विवाह?

इससे देवता परेशान हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु से जालंधर से छुटकारा पाने के लिए मदद मांगी. भगवान विष्णु ने एक योजना बनाई और वृंदा के पतिव्रता धर्म को नष्ट करने के लिए जालंधर का रूप धारण किया. भगवान विष्णु ने वृंदा को छूकर उसके पतिव्रता धर्म को तोड़ दिया, जिससे जालंधर की शक्ति कमजोर हो गई. इसके बाद, महादेव ने जालंधर का सिर धड़ से अलग कर दिया.

जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल के बारे में पता चला, तो वह क्रोधित हो गई और उन्हें पत्थर बनने का श्राप दे दिया. भगवान विष्णु तुरंत पत्थर में बदल गए, और देवताओं ने भगवान से श्राप वापस लेने की प्रार्थना की. वृंदा ने फिर अपना श्राप वापस ले लिया. 

तुलसी का पौधा और शालिग्राम 

श्राप वापस लेने के बाद, वृंदा ने अपने पति का सिर लेकर सती हो गई, और उनकी राख से एक पौधा उगा, जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया. भगवान विष्णु ने वरदान देते हुए कहा कि वह पत्थर रूप में शालिग्राम के रूप में रहेंगे, और शालिग्राम के साथ तुलसी को पूजा जाएगा. 

तुलसी विवाह की परंपरा
इस प्रकार, भगवान विष्णु के इस वरदान के कारण हर साल देवउठनी एकादशी पर तुलसी और शालिग्राम का विवाह किया जाता है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और हर साल बड़े धूमधाम से मनाई जाती है.

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12 November 2024, 08:31 AM IST

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