वैशाख माह की शुरुआत 7 अप्रैल से हो रहा है, वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तीथि को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। अप्रैल महीने में पड़ने वाले एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वराह रूप की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन व्यक्ति को सुर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके श्री हरि विष्णु की वराह रूप की पूजा करना चाहिए। वरुथिनी एकादशी के दिन वर्त का संकल्प लेना और अन्न दान के साथ-साथ कन्यादान करना बेहद ही फलदायी माना जाता है।
हिंदू धर्म में एकदशी तीथि बेहद शुभ माना जाता है शास्त्रों में वैशाख माह में पड़ने वाले वरुथिनी एकादशी का विशेष महत्व है। वैशाख माह भगवान विष्णु के पूजा पाठ के लिए विशेष माना जाता है। तो आइए वैशाख माह की वरुथिनी एकादशी के पूजा मुहुर्त और व्रत के महत्व के बारें में जानते है।
2023 में वरुथिनी एकादशी का व्रत 16 अप्रैल दिन रविवार को किया जाएगा, 16 अप्रैल को पड़ने वाली एकादशी तिथि को श्री हरि विष्णु के वराह अवतार की पूजा की जाती है। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की विशेष कृप्या मिलती है जिससे व्यक्ति के सभी कष्ट और पापों से मुक्ती मिल जाती है। जो भी भक्त वरुथिनी एकादशी का व्रत रखता है वह स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त करता है।
वरुथिनी एकादशी व्रत की शुरुआत 15 अप्रैल को रात 08 बजकर 45 मिनट पर शुरू होगा जो अगले दिन यानी 16 अप्रैल को शाम 06 बजकर 14 मिनट पर समाप्त हो जाएगा। वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वराह अवतार की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजकर 32 मिनट पर शुरु होगा जो 10 बजकर 45 मीनट पर समाप्त हो जाएगा।
वरुथिनी एकादशी व्रत का पारण अगले दिन यानी 17 अप्रैल को किया जाएगा जिसका शुभ मूहूर्त सुबह 05 बजकर 54 मिनट से 08 बजकर 29 मिनट तक रहेगा। दिए गए समय के बीच साधक अपना व्रत खोल सकते है।
स्कंद पुराण के मुताबिक जो भी साधक वैशाख माह में पड़ने वाला वरुथिनी एकादशी तीथि का व्रत रखकर भगवान विष्णु के वराह रूप की पूजा करता है उसे सौभाग्य प्राप्त होता है। ऐसा भी माना गया है कि जो भी साधक इस दिन अन्न दान और कन्यादान करता है उसे भगवान की विशेष कृप्या मिलती है। क्योंकि अन्न दान और कन्या दान को सर्वोश्रेष्ठ दान माना गया है, इस दान को करने से देवता, पितृ, मनुष्य सभी तृप्त होकर आशिर्वाद देते है। महाभारत में श्रीकृष्ण ने अर्जून को एकादशी तीथि का महत्व समझाते हुए कहा था कि जो भी व्यक्ति वैशाख माह के वरुथिनी एकादशी का व्रत रखता है और अन्न दान करता है उसे सहस्र वर्ष की तपस्या का लाभ मिलता है। शास्त्रों में लिखा है कि जो भी व्यक्ति वरुथिनी एकादशी के दिन जल सेवा करता है उस व्यक्ति के जीवन में कभी भी दुख, दरिद्रता और दुर्भाग्य नहीं रहता है वह सदा ही सुखमय जीवन व्यतीत करता है।
पुरतान समय में एक बार जब हिरण्याक्ष नामक राक्षस ने पृथ्वी को समुद्र में ले जाकर छिपा दिया था, तब भगवान विष्णु ब्रह्मा की नाक से वराह रूप में प्रकट हुए थे। देवताओं और ऋषि-मुनियों के आग्रह करने पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना शुरू किया। भगवार वराह ने अपने थुथनी की मदद से समुद्र के अंदर छिपे पृथ्वी का पता लगाया और अपने दांत पर रखकर समुद्र से पृथ्वी को बाहर ले आए। जब हिरण्याक्ष ने भगवान वराह को समुद्र के अंदर से पृथ्वी को बाहर लाते देखा तो उनसे युद्ध करने के लिए ललकारा। जिसके बाद भगवान वराह और दैत्य हिरण्याक्ष के बीच भीषण युद्ध हुआ अंत में भगवान वराह ने दैत्य हिरण्याक्ष का वध करके अपने खुरों से जल के सतंभित करके पृथ्वी को उसके उपर स्थापित कर भगवान वराह अंतरधार्न हो गए। First Updated : Thursday, 06 April 2023