Vat Savitri Vrat 2024: इस दिन होगी वट सावित्री की पूजा, जानें सही डेट से लेकर पूजन विधि और पौराणिक कथा
Vat Savitri Vrat 2024: हर साल वट सावित्री का व्रत महिलाएं करती है. ये पूजा पति की लंबी आयु के लिए होती है. इसके पीछे एक पुरानी कथा भी है. हालांकि उससे पहले हम आपको बताने वाले हैं कि इस साल वट सावित्री की पूजा किस दिन हो रही है.
Vat Savitri Vrat 2024: हर साल वट सावित्री का व्रत महिलाएं करती है. ये पूजा पति की लंबी आयु के लिए होती है. इसके पीछे एक पुरानी कथा भी है. हालांकि उससे पहले हम आपको बताने वाले हैं कि इस साल वट सावित्री की पूजा किस दिन हो रही है. दरअसल गूगल पर जब आप इस व्रत की डेट डालकर चेक करेंगे तो वट सावित्री व्रत की तिथि 21 जून बताई जा रही है. लेकिन ये तिथि गलत है. इस साल वट सावित्री का व्रत और पूजा 6 जून को है. ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की अमावस्या को वट सावित्री व्रत किया जाता है. बता दें कि ये तिथि 5 जून शाम से ही शुरू हो जाएगी और इसका व्रत 6 जून को रखा जाएगा.
क्या है पूजन विधि और मुहूर्त
पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत के दिन पूजा मुहूर्त प्रातः 11 बजकर 52 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक रहेगा. वट सावित्री व्रत के दिन विवाहित महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं. स्नान करें और व्रत का संकल्प करें. साथ ही इस दिन पीला सिन्दूर लगाना भी शुभ माना जाता है. इस दिन वट वृक्ष के नीचे सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्ति रखनी चाहिए. बरगद के पेड़ में जल डालें और फूल, मेवा, मिठाई चढ़ाएं. सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्तियां रखें. वट वृक्ष पर जल चढ़ाना चाहिए. पेड़ पर रक्षासूत्र बांधें और आशीर्वाद लें. पेड़ के चारों ओर सात परिक्रमा करें. इसके बाद काले चने हाथ में लेकर इस व्रत की कथा सुनें. कथा सुनने के बाद पंडितजी को दान देना न भूलें.
इस व्रत के पीछे की कथा
भद्र देश में अश्वपति नाम का राजा राज्य करता था. उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम सावित्री था. सावित्री अत्यंत सुंदर, विनम्र और गुणवान लड़की थी. जब सावित्री बड़ी हुई तो राजा ने उसे अपना पति चुनने की अनुमति दे दी. सावित्री ने सत्यवान नामक राजकुमार को चुना. सत्यवान शाल्व साम्राज्य के धृमत्सेन नामक अंधे राजा का पुत्र था. शत्रु से पराजित होकर राजा अपनी रानी और पुत्र सहित वन में रहने लगे. भगवान नारद ने सावित्री को सलाह दी कि वह सत्यवान से विवाह न करें क्योंकि वह जानते थे कि उनका जीवन केवल एक वर्ष है. लेकिन सावित्री ने इसे स्वीकार नहीं किया. उसने सत्यवान से विवाह कर लिया और वन में आकर पति के साथ सास-ससुर की सेवा करने लगी.
जब सत्यवान की मृत्यु को तीन दिन शेष रह गये तब सावित्री ने तीन दिन तक उपवास करके सावित्री व्रत प्रारम्भ किया. सावित्री सत्यवान के साथ जंगल में लकड़ी काटने गई। लकड़ी काटते समय उसे चक्कर आ गया और वह जमीन पर गिर पड़ा. यमराज वहां आये और सत्यवान के प्राण निकल गये. सावित्री अपने पति के साथ यम के पीछे-पीछे चल पड़ी. यम ने कई बार सावित्री को वापस जाने के लिए कहा. लेकिन उसने साफ इंकार कर दिया और अपने पति के साथ जाने की जिद पर अड़ गई. तंग आकर यम ने उसके पति को छोड़ दिया और उससे तीन वरदान मांगने को कहा. सावित्री ने अपने सास-ससुर की आंखें, राज्य और एक पुत्र का वरदान मांगा. यमराज ने झट से तथास्तु कहा. कुछ समय बाद उसे एहसास हुआ कि वह प्रतिबद्ध है और उसे सत्यवान के प्राण लौटाने होंगे. चूंकि सत्यवान के प्राण सावित्री द्वारा वड़ वृक्ष के नीचे पुनः प्राप्त किये जाने के कारण ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को महिलाएं वड़ वृक्ष की पूजा कर व्रत रखती हैं और वट सावित्री व्रत रखती हैं.