What is Eid Ul Adha: क्या है बकरीद; आसान भाषा में समझिए इस दिन क्यों दी जाती है जानवरों की कुर्बानी?
History of EId Ul Adha: ईद उल अजहा का त्योहार आने वाला है. ऐसे में ज्यादा तर लोग जानवरों की कुर्बानी देते हैं. बकरीद के मौके पर कुर्बानी क्यों दी जाती है और इसका इतिहास क्या है? ये सब जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर
हाइलाइट
- मुसलमानों का बड़ा त्योहार ईद उल अजहा 29 जून को मनाया जाएगा.
- इस त्योहार पर ज्यादातर मुसलमान जानवरों की कुर्बानी देते हैं.
- बकरीद के मौके पर जानवरों की कुर्बानी क्यों दी जाती है, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर
What is Eid Ul Adha & Bakrid: हिंदुस्तान में हर मज़हब के लोग रहते हैं जो वक्त-वक्त पर अपने त्योहार मनाते हैं. हाल ही में मुस्लिम समाज का एक बड़ा त्योहार 'ईद उल अज़हा' आने वाला है. इस त्योहार को 'बकरा ईद' और 'कुर्बानी का त्योहार' भी कहा जाता है. ईद उल अज़हा त्योहार इस साल 29 जून को मनाया जाएगा. ईद उल अज़हा का त्योहार ना सिर्फ हिंदुस्तान बल्कि दुनियाभर के मुस्लिम मनाते हैं. कई बार आपके ज़हन में आया होगा कि आखिर यह त्योहार क्यों मनाया जाता है और क्यों इस दिन जानवरों की कुर्बानी दी जाती है? तो इस खबर में हम आपको आज यही बताने वाले हैं.
क्या है ईद उल अज़हा का मतलब?
क्यों दी जाती है जानवरों की कुर्बानी?
दरअसल हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को एक ख्वाब आया था. जिसमें वो अपने बेटे को जिबह (काट) रहे थे. हालांकि उन्होंने इस ख्वाब पर ध्यान नहीं दिया. लेकिन उनको यह ख्वाब लगातार तीन दिनों तक आया तो उनको महसूस हुआ कि यह ख्वाब यकीनन अल्लाह की तरफ से है. इसके बाद उन्होंने इस ख्वाब पर अमल करना चाहा. हालांकि उनके पास सिर्फ एक एक ही बेटा था, जिसका नाम इस्माईल था. लेकिन उन्होंने अपने जज्बात को काबू करते हुए अपने प्यारे बेटे को अल्लाह की राह में कुर्बान करने का इरादा कर लिया.
बेटे को जिबह करते वक्त आंखों पर बांध ली थी पट्टी:
कहा जाता है कि हजरत इब्राहीम अपने बेटे को घर से कहीं दूर ले गए और फिर अपने बेटे की कुर्बानी देते वक्त उनका दिल बहुत रोया लेकिन उन्होंने खुद पर कंट्रोल किया. यहां तक कि बेटे इस्माईल ने भी उनको हिम्मत दी कि आपको जो हुक्म हुआ है वो करें. कहा यह भी जाता है कि जब वो अपने बेटे को लिटाकर जिबह करने वाले थे तो उन्होंने उसको उल्टा लिटाया हुआ था. क्योंकि वो आंख नहीं मिला सकते थे और उन्होंने अपनी आंखों पर भी पट्टी बांध ली थी.
बेटे की गर्दन पर नहीं चली छुरी:
हैरानी की बात यह थी कि जब हजरत इब्राहीम ने बेटे इस्माईल की गर्दन पर छुरी चलाई तो वो नहीं चली. हजरत इब्राहीम ने कई और कोशिशें कीं लेकिन वो नाकाम हुए. कहा जाता है कि फिर अल्लाह ने जबरईल अलैहिस्सलाम (फरिश्ता) के ज़रिए वहां एक दुंबा (जानवर) भिजवाया और फिर उसको जिबह किया गया. इस्लाम के मुताबिक हजरत इब्राहीम के लिए यह सिर्फ एक इम्तिहान था और वो इसमें कामयाब भी हुए. यहीं से कुर्बानी की शुरुआत हुई.
कौन थे हजरत इब्राहीम?
इस्लाम की मान्यताओं के मुताबिक इस दुनिया में अलग-अलग समय में 1 लाख 24 हजार से ज्यादा पैगंबर भेजे गए हैं. उन्हीं में से एक हजरत इब्राहीम भी हैं. वहीं आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब हैं. हजरत इब्राहीम को यहूदी और ईसाई धर्म को मानने वाले लोग भी मानते हैं. हैरानी की बात यह थी कि हजरत इब्राहीम बुजुर्ग हो गए थे लेकिन उनको औलाद की खुशी नसीब नहीं हुई थी. जब वो काफी बुजुर्ग हो गए थे तब उनके यहां पर हजरत इस्माईल की पैदाइश हुई थी.