जब मां पार्वती की रक्षा के लिए महादेव ने लिया रौद्र रूप, शिव ने अपने ही अंशों का किया संहार

Shiv Puran: भगवान शिव सिर्फ सृष्टि के पालनकर्ता ही नहीं, बल्कि अन्याय और अधर्म के विनाशक भी हैं. जब बात धर्म और अपने प्रियजनों की रक्षा की आती है, तो वे अपने ही अंशों का अंत करने से भी पीछे नहीं हटते. ऐसी ही दो कथाएं जुड़ी हैं अंधकासुर और जलंधर से.

Shivani Mishra
Edited By: Shivani Mishra

Shiv Puran: भगवान शिव को उनके अनुयायियों और परिवारजनों की रक्षा के लिए किसी भी सीमा तक जाने वाला देवता माना जाता है. शिव का क्रोध इतना भयंकर होता है कि वे अधर्म और अन्याय को सहन नहीं करते, चाहे अपराधी उनका अपना ही क्यों न हो. ऐसे ही एक प्रसंग में भगवान शिव ने अपनी ही संतान का अंत कर दिया था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि धर्म की रक्षा के लिए वे किसी भी सीमा को पार कर सकते हैं.

यह दो कथाएं दो असुरों, अंधक और जलंधर, से जुड़ी है, जिन्हें शिव का ही अंश माना जाता है. लेकिन जब इन दोनों ने पाप और अधर्म की सीमाएं लांघीं, तब महादेव ने न्याय और धर्म की स्थापना के लिए अपने ही अंशों का अंत कर दिया. आइए जानते हैं इस मार्मिक कथा की पूरी कहानी.

अंधकासुर: शिव के पसीने से उत्पन्न पुत्र 

अंधक को भगवान शिव और माता पार्वती का पुत्र माना जाता है. उसकी उत्पत्ति माता पार्वती के पसीने से हुई थी और स्वभाव से वह आसुरी प्रवृत्ति का था. शिव ने उसे राक्षस हिरण्याक्ष को उपहारस्वरूप दे दिया था. अंधक को यह वरदान प्राप्त था कि वह अपनी मां के सिवा किसी भी स्त्री से संबंध बना सकता है, लेकिन उसे यह ज्ञात नहीं था कि पार्वती उसकी मां हैं.

एक दिन अंधक ने पार्वती को विवाह के लिए प्रस्ताव दिया और जब पार्वती ने मना किया, तो उसने उन्हें बलपूर्वक ले जाने का प्रयास किया. यह देख भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने त्रिशूल से अंधक का वध कर दिया. इस प्रकार महादेव ने न केवल अपनी पत्नी की रक्षा की, बल्कि समस्त लोकों को अंधक के आतंक से मुक्त किया.

जलंधर: शिव के तेज से उत्पन्न असुर

एक अन्य कथा असुर जलंधर से जुड़ी है, जो भगवान शिव के तेज से उत्पन्न हुआ था. उसकी उत्पत्ति ही इतनी दिव्य थी कि वह अत्यंत शक्तिशाली बन गया. जलंधर धीरे-धीरे अत्याचारी बन गया और देवताओं को परेशान करने लगा. एक बार उसने तो विष्णु लोक पर आक्रमण करने की भी कोशिश की.

जलंधर की शक्ति की असली रक्षा उसकी पत्नी वृंदा से होती थी, जो परम पतिव्रता और भगवान विष्णु की परम भक्त थीं. वृंदा के तप के प्रभाव से जलंधर अजेय हो गया था. लेकिन जब जलंधर ने पार्वती को हरने का प्रयास किया और कैलाश पर चढ़ाई कर दी, तब महादेव को हस्तक्षेप करना पड़ा.

शिव और जलंधर के बीच घोर युद्ध हुआ, लेकिन वृंदा के पुण्य के कारण शिव की शक्ति जलंधर पर असर नहीं कर रही थी. तब भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण किया और वृंदा के पास पहुंचे. वृंदा ने विष्णु को अपना पति समझ लिया, जिससे उसका पतिव्रत भंग हो गया.

इस घटना के बाद वृंदा के तप की शक्ति समाप्त हो गई और शिव ने जलंधर का वध कर दिया. इस प्रकार शिव ने न केवल देवताओं को जलंधर के आतंक से मुक्ति दिलाई, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि अधर्म चाहे किसी से भी जुड़ा हो, उसका अंत निश्चित है.

Disclaimer: ये आर्टिकल धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है, JBT इसकी पुष्टि नहीं करता.

calender
04 April 2025, 01:24 PM IST

जरूरी खबरें

ट्रेंडिंग गैलरी

ट्रेंडिंग वीडियो

close alt tag