बेटियों के घर का खाना क्यों नहीं खाते हैं मां-बाप? जानिए इसके कारण...
हिंदू धर्म में कई माता-पिता अपनी बेटी की शादी के बाद उसके घर का खाना नहीं खाते. हालांकि, बदलते समय में अब लोग इस पर सवाल उठाने लगे हैं. आइए जानते हैं कि आखिर क्यों मां-बाप अपनी बेटी के घर का खाना नहीं खाते हैं.

हिंदू धर्म में बेटी को देवी का रूप माना जाता है. शादी में कन्या दान को महादान कहा जाता है. बेटी की शादी को सबसे बड़े पुण्य कार्यों में से एक माना जाता है क्योंकि अपनी बेटी को किसी अन्य घर में सौंपना समाज और संसार के लिए एक बड़ा कदम होता है. इसके बाद समाज में कई प्रथाएं और रीतियां प्रचलित हैं, जैसे कि शादी के बाद बेटी के घर का खाना न खाना.
बढ़ते बदलावों के साथ उठ रहे सवाल
समाज में बढ़ते बदलावों के साथ कई सवाल उठने लगे हैं, जैसे शादी के बाद बेटी के घर का खाना क्यों नहीं खाया जाता? आजकल महिलाएं भी पुरुषों की तरह कमा रही हैं और अपने पैरों पर खड़ी होकर परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं, लेकिन फिर भी शादी के बाद वह अपने माता-पिता के घर का खाना खाने से झिझकती हैं. इससे कई सवाल और पीड़ा उत्पन्न होती है.
धार्मिक मान्यताएं
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कन्यादान को महादान माना गया है और कहा जाता है कि दान की हुई वस्तु को वापस नहीं लिया जाना चाहिए. इसी वजह से कुछ लोग मानते हैं कि बेटी के घर का खाना खाने से कन्यादान का महत्व कम हो सकता है. कुछ धार्मिक ग्रंथों में यह भी कहा गया है कि माता-पिता को अपनी बेटी के घर का खाना नहीं खाना चाहिए, क्योंकि इससे पितृ ऋण का उल्लंघन होता है.
पुराने समय में यह विश्वास था कि माता-पिता को अपनी बेटी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. उन्हें आत्मनिर्भर होना चाहिए. कुछ लोग मानते थे कि बेटी के घर का खाना खाने से उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा पर असर पड़ सकता है और लोग उन्हें कमजोर समझ सकते हैं.
लेकिन आजकल बहुत से लोग इन पुरानी मान्यताओं को नहीं मानते. वे मानते हैं कि बेटी और माता-पिता के बीच प्यार और सम्मान का संबंध होना चाहिए. इस प्रकार, वे बेटी के घर का खाना खाने में कोई बुराई नहीं मानते. आर्थिक स्थिति के कारण भी माता-पिता कभी-कभी बेटी के घर का सहारा लेते हैं और आज के समय में इसे कोई गलत नहीं माना जाता.