हिंदू धर्म में पूजा, व्रत और धार्मिक अनुष्ठानों का विशेष महत्व है. इन कर्मकांडों को सही तरीके से करने के लिए शास्त्रों में कई नियम बताए गए हैं. इन्हीं नियमों में से एक महत्वपूर्ण नियम है पूजा या व्रत से पहले संकल्प लेना. कहा जाता है कि संकल्प के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है और उसका पूरा फल नहीं मिलता.
आइए जानते हैं संकल्प का महत्व और इसे कैसे लिया जाता है. संकल्प का अर्थ यह है कि अपने इष्ट देवता या स्वयं को साक्षी मानकर यह प्रतिज्ञा करना कि हम इस पूजा या व्रत को एक विशेष उद्देश्य के लिए कर रहे हैं.
शास्त्रों के अनुसार, संकल्प लेने से पूजा और व्रत में एकाग्रता और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है. ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास का कहना है कि यदि पूजा या व्रत से पहले विधिपूर्वक संकल्प लिया जाए, तो इसका शुभ फल जल्दी प्राप्त होता है.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, संकल्प पूजा का अनिवार्य हिस्सा है. इसके बिना किए गए पूजा-पाठ या व्रत का फल व्यक्ति को नहीं मिलता, बल्कि वह फल इंद्र देव को प्राप्त हो जाता है.
संकल्प लेने की एक निश्चित विधि होती है, जो पूजा प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा है.
1. सबसे पहले पूजा के स्थान को शुद्ध करें.
2. भगवान गणेश का ध्यान करें, क्योंकि वे सभी विघ्नों को दूर करने वाले माने जाते हैं.
3. हाथ में जल, अक्षत (चावल), और फूल लेकर अपने इष्ट देवता का ध्यान करें.
4. अपने मन की मनोकामना को स्पष्ट रूप से सोचें और उस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए संकल्प लें.
5. संकल्प के दौरान, अपने नाम, गोत्र और मनोकामना का उल्लेख करें.
संकल्प के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है. यह पूजा का पहला और महत्वपूर्ण कदम है.
संकल्प से व्यक्ति की ऊर्जा और ध्यान पूजा में केंद्रित होता है.
संकल्प लेने से पूजा का फल व्यक्ति को सीधे मिलता है, अन्यथा यह इंद्र देव को चला जाता है. First Updated : Friday, 29 November 2024