सनातन धर्म में क्यों रखते हैं चोटी ? जानिए वैज्ञानिक कारण

सनातन धर्म में शिखा रखने का विशेष महत्व है। मंदिर में पूजा कराने वाले पुजारी जी, आचार्य, पुरोहित आदि सभी शिखा रखते हैं। शिखा को सामान्य भाषा में चोटी भी कहते हैं। भारतीय संस्कृति में शिखा रखने की परंपरा सदियों पुरानी है। 

Saurabh Dwivedi
Saurabh Dwivedi

सनातन धर्म में शिखा रखने का विशेष महत्व है। मंदिर में पूजा कराने वाले पुजारी जी, आचार्य, पुरोहित आदि सभी शिखा रखते हैं। शिखा को सामान्य भाषा में चोटी भी कहते हैं। भारतीय संस्कृति में शिखा रखने की परंपरा सदियों पुरानी है। 
हिंदू धर्म में व्यक्ति के जन्म से लेकर मरण तक 16 प्रकार के संस्कार होते हैं जिनमें से मुंडन संस्कार के समय सबसे पहले शिशु को शिखा प्रदान की जाती है। सिर पर शिखा या चोटी रखने का संस्कार यज्ञोपवीत या उपनयन संस्कार में भी किया जाता है। हिंदू धर्म के मुताबिक किसी बड़े धार्मिक अनुष्ठान को कराने के लिए सिर पर शिखा का होना आवश्यक माना जाता है। 

सिर के बीच में सहस्त्रार चक्र होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी बिंदु पर आत्मा का निवास होता है। सहस्रार चक्र के ऊपर ही शिखा होती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सहस्त्रार चक्र का आकार गाय के खुर के समान माना गया है इसलिए चोटी भी गाय के खुर के बराबर ही रखी जाती है। माना जाता है कि चोटी रखने से बुद्धि कुशाग्र होती है इसलिए पहले के समय में शिक्षा और ज्ञान से जुड़े हुए अधिकतर लोगों के सिर पर शिखा हुआ करती थी। 
हर कर्म के पीछे कोई ना कोई कारण जरूर होता है। हिंदू धर्म में मानी जाने वाली अधिकतर मान्यताओं के पीछे भी कोई ना कोई वैज्ञानिक कारण अवश्य होता है। इसी प्रकार चोटी रखने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं। जिस स्थान पर शिखा होती है उसी स्थान पर मस्तिष्क का केंद्र है। इसी स्थान से शरीर के अंग, बुद्धि और मन नियंत्रित होते हैं। चोटी रखने से सहस्त्रार चक्र जागृत रहता है और सहस्त्रार चक्र के जाग्रत होने से बुद्धि, मन और शरीर पर नियंत्रण रखने में सहायता मिलती है।

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26 June 2023, 05:11 PM IST

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