हिन्दू मंदिरों में हर जगह एक गर्भगृह होता है, मगर क्या आपको पता है कि इसे बनाया क्यों जाता है. इसके बारे में आज हम विस्तार पूर्वक आपको बताएंगे. सनातन धर्म में भगवान के पूजा-पाठ के लिए कई तरह के नियम कानून है. जिसका पालन करना हर किसी के लिए बेहद जरूरी होता है, चलिए विस्तार से जानिए.
क्या है गर्भगृह का सही मतलब
धार्मिक ग्रंथों में मंदिर के गर्भगृह को मंदिर का हृदय कहा जाता है. इसके अंदर मंदिर के मूल देवी-देवता की प्रतिमा स्थापित होती है. दरअसल गर्भगृह में ही देवी-देवताओं को स्नान, भोग, विश्राम करवाया जाता है. कई गर्भगृह के अंदर परिक्रमा और दर्शन करने के लिए स्थान दिया जाता है. मगर कई जगहों पर प्रवेश भी वर्जित होता है. इस स्थान में प्रमुख देवता की मूर्ति के साथ ही उनके परिवार के सदस्यों की मूर्तियां विराजित की जाती है. जैसे शिव जी के देवस्थान में माता पार्वती और उनके पुत्रों की मूर्तियां स्थापित होती हैं.
इसके अलावा विष्णु जी के साथ लक्ष्मी और राम जी के साथ-सीता जी विराजमान रहती हैं. साथ ही गर्भगृह के द्वार खोलने और बंद करने का भी नियम होता है, सुबह एक नियत समय पर ही द्वार खोले जाते हैं साथ ही सही समय पर बंद भी किए जाते हैं. बदरीनाथ, केदारनाथ जैसे देवालयों में 6 महीने तक कपाट बंद ही रहता है, इसलिए जब कपाट खुलते हैं तो बड़ी संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं और वाद्ययंत्रों की गूंज के साथ कपाट खोलने की प्रक्रिया पूरी की जाती है.
मंदिर में गर्भगृह क्यों होता है
हर बड़े मंदिर में गर्भगृह का निर्माण किया जाता है, जिससे देवी-देवताओं की पवित्रता बनी रहे. गर्भगृह में वही पुजारी भगवान को भोग अर्पित करते हैं जो बहुत पवित्र होते हैं. अपवित्रता होने पर भगवान का ध्यान भंग हो सकता है, इसकी पवित्रता इतनी होती है कि अगर कोई इस स्थान में प्रवेश करता है तो उसकी सभी पीड़ाएं नष्ट हो जाती है.
First Updated : Tuesday, 25 June 2024