Tulsi Vivah 2023: देवउठनी एकादशी पर क्यों किया जाता है तुलसी विवाह? जानें महत्व और इतिहास

Tulsi Vivah 2023: हिंदू धर्म की माने तो हर घर में तुलसी का पौधा होना एक आम बात है. क्योंकि तुलसी के पौधे को पूजनीय स्थान दिया जाता है.

Tulsi Vivah 2023: हिंदू धर्म की माने तो हर घर में तुलसी का पौधा होना एक आम बात है. क्योंकि तुलसी के पौधे को पूजनीय स्थान दिया जाता है. क्योंकि तुलसी का पौधा हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है और लोग इसे अपने घर के आँगन या दरवाजे पर या बाग में लगाते हैं. भारतीय संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों और उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है.

कहा जाता है कि तुलसी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है और इसका पूजन करने से वह प्रसन्न हो जाते है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व माना गया है और देवउठनी एकादशी से इसका खास कनेक्शन है. 

हिंदू धर्म के आनुसार देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं और फिर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानि देवउठनी एकादशी के दिन योग निद्रा से जागते हैं. इस दिन से भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागने के बाद से ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत होने लगती है. इस साल देवउठनी एकादशी 23 नवंबर को पड़ रहा है (दिपावली के ग्यारहवे दिन) और इस दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है. बता दें कि कुछ लोग देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह करते हैं तो कुछ लोग दिया भी जलते है. वहीं कुछ जगहों पर एकादशी के अगले दिन तुलसी विवाह का त्यौहार मनाया जाता है.

तुलसी का महत्व

हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे का विशेष महत्व होता है. धार्मिक रूप से इसका खास महत्व है. तुलसी माता को मां लक्ष्मी का ही स्वरूप माना जाता है, जिनका विवाह शालीग्राम भगवान से हुआ था. शालीग्राम दरअसल, भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण का ही रूप माने जाते हैं. देवउठनी या देवोत्थान एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु चार मास बाद जागते हैं. तुलसी जी को विष्णु प्रिया भी कहा जाता है, इसलिए देव जब उठते हैं तो हरिवल्लभा तुलसी की प्रार्थना ही सुनते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी जी का विवाह शालिग्राम से की जाती है. अगर किसी व्यक्ति को कन्या नहीं है और वह जीवन में कन्या दान का सुख प्राप्त करना चाहता है तो वह तुलसी विवाह कर प्राप्त कर सकता है.

तुलसी का इतिहास 

हिंदू धर्म के अनुसार तुलसी का पूर्व जन्म में एक लड़की थी. वह राक्षस कुल में जन्म ली थी. उसका विवाह राक्षस कुल में ही दानव राज जलंधर से संपन्न हुआ था. लेकिन वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी. 

एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध होने लगा, तब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा. स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं, आप जब तक युद्ध में रहेंगे, मैं पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी. जब तक आप नहीं लौट आते मैं अपना संकल्प नहीं छोड़ूंगी. ऐसे में कोई भी देवता जलंधर को पराजित नही कर पा रहे थे. तब भगवान विष्णु जी राय मागी गई तो इस पर भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धरा और वृंदा के महल में पहुंच गए.

वृंदा ने जैसे ही अपने पति को देखा तो तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिया। इधर, वृंदा का संकल्प टूटा, उधर युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया. इस पर भगवान विष्णु अपने रूप में आ गए पर कुछ बोल न सके. वृंदा ने कुपित होकर भगवान को श्राप दे दिया कि वे पत्थर के हो जाएं. इसके चलते भगवान तुरंत पत्थर के हो गए, सभी देवताओं में  हाहाकार मच गया. देवताओं की प्रार्थना के बाद वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया.

इसके बाद वे अपने पति का सिर लेकर सती हो गईं. उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने उस पौधे का नाम तुलसी रखा और कहा कि मैं इस पत्थर रूप में भी रहुंगा, जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा.

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21 November 2023, 08:49 PM IST

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