जब एक पेड़ के लिए महाराज से लड़ गए थे बिश्नोई, 300 से भी ज्यादा लोगों ने दे दी थी अपनी जान
Bishnoi community: बिश्नोई समुदाय का प्रकृति प्रेम और संरक्षण की प्रेरक कहानियां हाल ही में सलमान खान के ब्लैकबक शिकार मामले के संदर्भ में चर्चा में आई हैं. 1730 में, जोधपुर के महाराजा अभय सिंह के आदेश पर खेजड़ी के पेड़ों की रक्षा के लिए 363 बिश्नोई लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया. आज भी बिश्नोई समुदाय अपने पूर्वजों की विरासत को याद करते हुए पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पित है.
Bishnoi community: सलमान खान को ब्लैकबक शिकार मामले में मिली धमकियों के बाद एक बार फिर बिश्नोई समुदाय के प्रकृति प्रेम और संरक्षण की कहानियां चर्चा में आ गई हैं. यह वही समुदाय है जिसने लगभग 300 साल पहले पेड़ों को बचाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था. 1730 में, जोधपुर के महाराजा के आदेश पर खेजड़ी के पेड़ों को काटे जाने से बचाने के लिए 363 बिश्नोई पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने अपने जीवन का बलिदान दिया था. यह घटना इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरण आंदोलनों में से एक के रूप में याद की जाती है.
बिश्नोई समुदाय का प्रकृति के प्रति यह प्रेम और समर्पण समय की कसौटी पर खरा उतरा है. वनस्पति और जीव-जंतुओं के संरक्षण के लिए उनकी प्रतिबद्धता आज भी जीवंत है. इस समुदाय की पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणादायक यात्रा को याद करते हुए हम खेजड़ली नरसंहार और बिश्नोई समुदाय की पर्यावरणीय नैतिकता की गहराई से समझने की कोशिश करते हैं.
खेजड़ली नरसंहार: जब पेड़ों के लिए बिश्नोइयों ने दी जान
1730 में राजस्थान के जोधपुर के महाराजा अभय सिंह ने खेजड़ी के पेड़ों को काटने का आदेश दिया था ताकि उनके महल के निर्माण के लिए लकड़ी मिल सके. बिश्नोई समुदाय के लिए खेजड़ी का पेड़ एक धार्मिक और पर्यावरणीय धरोहर है, जिसे वे जीवनदायिनी मानते हैं. जब महाराजा के सैनिकों ने पेड़ों को काटने की शुरुआत की, तो बिश्नोई महिला अमृता देवी ने विरोध करते हुए पेड़ से लिपटकर अपने प्राणों की आहुति दी. उनके बाद, समुदाय के 363 लोगों ने अपने जीवन का बलिदान दिया.
अमृता देवी का बलिदान और प्रेरणादायक अंतिम शब्द
अमृता देवी और उनकी दो बेटियां खेजड़ी के पेड़ों से लिपट गईं ताकि उन्हें काटा न जा सके. सैनिकों ने उन सभी की हत्या कर दी. मरते समय अमृता देवी के अंतिम शब्द थे, "सर संते रूंख रहे तो भी सस्ता जान," जिसका अर्थ है कि "कटा हुआ सिर, कटा हुआ पेड़ से सस्ता है." यह वाक्य बिश्नोई समुदाय की पर्यावरण के प्रति समर्पण का प्रतीक बन गया.
363 बिश्नोइयों का बलिदान और महाराजा का आदेश
जैसे ही अमृता देवी की हत्या की खबर फैलती गई, 83 गांवों से बिश्नोई पुरुष, महिलाएं और बच्चे खेजड़ी के पेड़ों को बचाने के लिए आगे आए. उन्होंने पेड़ों से लिपटकर अपनी जान दे दी. जब इस नरसंहार की खबर महाराजा अभय सिंह तक पहुंची, तो उन्हें अपना आदेश वापस लेना पड़ा. उन्होंने खेजड़ली क्षेत्र को संरक्षित घोषित कर दिया और वहां पेड़ों की कटाई और शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया.
चिपको आंदोलन से प्रेरणा
कई लोगों का मानना है कि खेजड़ली नरसंहार ने बाद में 1970 के दशक के चिपको आंदोलन को प्रेरित किया, जिसमें उत्तराखंड के ग्रामीणों ने पेड़ों को बचाने के लिए उन्हें गले लगाया. यह घटना बिश्नोई समुदाय के साहस और दृढ़ निश्चय का प्रतीक बन गई और भारत में पर्यावरण संरक्षण का एक आदर्श बन गई.
बिश्नोई समुदाय का प्रकृति प्रेम आज भी जारी
आज भी बिश्नोई समुदाय पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपने उसी समर्पण के साथ खड़ा है. 1998 में सलमान खान द्वारा काले हिरणों के शिकार के खिलाफ उनकी कानूनी लड़ाई इस बात का उदाहरण है कि वन्यजीव और पर्यावरण उनके लिए कितने महत्वपूर्ण हैं. हर साल, बिश्नोई समुदाय खेजड़ली में मेला लगाकर अपने पूर्वजों के बलिदान को याद करता है और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को दोहराता है.