कौन था इब्न बतूता, किस मकसद आया भारत और क्यों भागा; यहां जानें पूरी कहानी
Ibn Battuta: इब्न बतूता का जन्म 24 फरवरी 1304 ई. को उत्तर अफ्रीका के मोरक्को के तांजियर में हुआ था. अपनी यात्रा के दौरान वह मक्का-मदीना, ईरान, क्रीमियां, खीवा, बुखारा होता हुआ अफगानिस्तान के रास्ते भारत के सिंध प्रांत में 1334 ई. में पहुंचा.
Ibn Battuta Birth Anniversary: अपने लंबे सफर को लेकह मशहूर हुए इब्न बतूता का पूरा नाम ज्यादा लंबा है. बहुत कम लोग होंगे जो इब्न बतूता का पूरा नाम जानते होंगे. इसका पूरा नाम- इब्न बतूता मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद बिन इब्राहीम अललवाती अलतंजी अबू अबुल्लाह था. इतिहासकारों के मुताबिक, अपने जमाने के इस मशहूर यात्री ने 28 साल की उम्र में कुल 75 हजार मील का सफर तय किया था. ऐसा भी कहा जाता है कि इब्र बतूता का दिल्ली से भी काफी जुड़ाव रहा है.
इब्न बतूता का जन्म 24 फरवरी 1304 ई. को उत्तर अफ्रीका के मोरक्को के तांजियर में हुआ था. अपनी यात्रा के दौरान वह मक्का-मदीना, ईरान, क्रीमियां, खीवा, बुखारा होता हुआ अफगानिस्तान के रास्ते भारत के सिंध प्रांत में 1334 ई. में पहुंचा. उस वक्त दिल्ली में सुल्तान मुहम्मद बिन तुलगक का शासन था.
भारत कैसे पहुंचा इब्न बतुता?
इब्न बत्तूता दमिश्क और फिलिस्तीन होता एक कारवां के साथ मक्का पहुंचा. यात्रा के दिनों में दो साधुओं से उसकी भेंट हुई थी. जिन्होंने उससे पूर्वी देशों की यात्रा के सुख सौंदर्य का वर्णन किया था. इसी समय उसने उन देशों की यात्रा का संकल्प कर लिया. मक्के से इब्न बत्तूता इराक, ईरान, मोसुल आदि स्थानों में घूमकर दुबारा मक्का लौटा और वहां तीन साल तक रूका. इसके बाद में उसने फिर यात्रा आरंभ की और दक्षिण अरब, पूर्वी अफ्रीका तथा फारस के बंदरगाह हुर्मुज से तीसरी बार फिर मक्का गया. वहा. से वह क्रीमिया, खीवा, बुखारा होता हुआ अफगानिस्तान के मार्ग से भारत आया.0 भारत पहुंचने पर इब्न बत्तूता बड़ा वैभवशाली एवं संपन्न हो गया था.
राजदूत बनाकर चीन भेजे मुहम्मद तुगलक
भारत के उत्तर पश्चिम द्वार से प्रवेश करके वह सीधा दिल्ली पहुंचा. जहां तुगलक सुल्तान मुहम्मद ने उसका बड़ा आदर सत्कार किया और उसे राजधानी के काज़ी के रूप में नियुक्त किया. इस पद पर वह पूरे सात साल तक रहा. इस दौरान उसे सुल्तान को काफी नजदीक से देखने का मिला. इब्न बत्तूता ने हर घटना को बड़े ध्यान से देखा औ सुना. 1342 ई में मुहम्मद तुगलक ने उसे चीन के बादशाह के पास अपना राजदूत बनाकर भेजा, परंतु दिल्ली से निकलने के थोड़े दिन बाद ही वह बड़ी समस्या में पड़ गया और बड़ी कठिनाई से अपनी जान बचाकर वह कालीकट पहुंचा.
भारत से भागने की कहानी
ऐसी परिस्थिति में सागर के रास्ते चीन जाना व्यर्थ समझकर वह भूभार्ग से यात्रा करने निकल पड़ा और लंका, बंगाल घूमता चीन जा पहुंचा. किंतु शायद वह मंगोल खान के दरबार तक नहीं गया. इसके बाद उसने पश्चिम एशिया, उत्तर अफ्रीका तथा स्पेन के मुस्लिम स्थानों का भ्रमण किया और अंत में टिंबकट् आदि होता मोरक्को की राजधानी "फेज" लौट गया.