बीसीसीआई की बैठक में ड्रामा
बीसीसीआई गंदी राजनीति के लिए वर्षों से मशहूर है। ऐसा नहीं है कि पहली बार इस तरह की राजनीति हुई है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर बीसीसीआई अपने अंदर स्वस्थ परंपरा और बेहतर कार्यशैली क्यों नहीं विकसित होने दे रहा है
बीसीसीआई गंदी राजनीति के लिए वर्षों से मशहूर है। ऐसा नहीं है कि पहली बार इस तरह की राजनीति हुई है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर बीसीसीआई अपने अंदर स्वस्थ परंपरा और बेहतर कार्यशैली क्यों नहीं विकसित होने दे रहा है। निश्चित रूप से क्रिकेट का इससे भला नहीं हो सकता।कहा जा रहा है कि 1983 वर्ल्ड चैंपियन टीम के मेंबर रोजर बिन्नी भारतीय क्रिकेट बोर्ड के अगले बॉस होंगे। सचिव जय शाह अपने पद पर बने रहेंगे। अक्टूबर 2019 में अध्यक्ष बने सौरव गांगुली को पूरा विश्वास था कि बतौर बीसीसीआई अध्यक्ष का एक और कार्यकाल मिल सकता है। लेकिन मंगलवार यानी 11 अक्टूबर को हुई बैठक में सौरव गांगुली पर कई अंगुलियां उठी। पूर्व कप्तान अध्यक्ष पद पर बने रहना चाहते थे लेकिन मीटिंग में 'प्रिंस ऑफ कोलकाता'अकेले पड़ गए थे। हैरानी की बात है कि सौरव गांगुली को हटाने की इनसाइड स्टोरी तैयार की गई थी। पूर्व एन श्रीनिवासन ने उठाए कार्यकाल पर सवाल। कामकाज के तरीके पर ही सवालिया निशान खड़ा कर दिया गया।
बीसीसीआई का एक धड़ा सौरव से नाराज नजर आया। पूरी मीटिंग में दादा अलग-थलग पड़े दिखे। गांगुली बोर्ड का अध्यक्ष बना रहना चाहते थे,लेकिन उनसे दो टूक मना कर दिया गया। भारतीय टीम के पूर्व कप्तान बोर्ड के इस फैसले से नाखुश थे। इसलिए यह कहने में कोई हिचक नहीं कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड से सौरव गांगुली का बोरिया बिस्तर बंध चुका है। मुंबई में मंगलवार को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) हेड क्वार्टर के बाहर देश के अलग-अलग क्रिकेट संघ से आए नुमाइंदे इकट्ठे थे। सौरव गांगुली के भविष्य को लेकर आपस में खुसुर-फुसुर हो रही थी। कोई कह रहा था कोलकाता वापसी हो जाएगी। किसी ने दोबारा दिल्ली कैपिटल्स फ्रैंचाइजी में जाने की बात कह डाली। साफ था कि गांगुली इस दिन काफी कुछ खोने वाले थे, जिसका अंदाजा शायद उन्हें भी था। पिछली कार्यकारिणी के लगभग सभी सदस्यों को दोबारा मौका दिया गया। सिवाय गांगुली और संयुक्त सचिव जयेश जॉर्ज के। सूत्रों का कहना है कि गांगुली ने अपनी नाराजगी छिपाने की कोई कोशिश भी नहीं की। पुराना अध्यक्ष, नए अध्यक्ष का नाम प्रस्तावित करता है, लेकिन गांगुली ने रोजर बिन्नी के नाम का प्रस्ताव तक नहीं रखा।बीसीसीआई ऑफिस में सौरव गांगुली परेशान दिख रहे थे। हताश और निराश भी थे।
नामांकन प्रक्रिया खत्म होने के बाद वह हेडक्वार्टर से निकलने वाले आखिरी आदमी थे। तेजी से अपनी कार में बैठे। खिड़की के शीशे चढ़ाए और निकल गए। बीसीसीआई अध्यक्ष पद पर बने रहने के इच्छुक थे, लेकिन उन्हें बताया गया बोर्ड अध्यक्ष पद के मामले में ऐसा चलन नहीं है।यह बात भी किसी से छिपी नहीं हैं कि पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष और वर्तमान बीसीसीआई टीम के मेंटर एनश्रीनिवासन गांगुली के मुखर आलोचकों में से एक थे। दादा पर आरोप लगे कि उन्होंने ऐसे ब्रांड्स का समर्थन किया,जो बीसीसीआई के ऑफिशियल स्पॉन्सर्स के प्रतिद्वंद्वी थे। यह मुद्दा अक्सर सदस्यों के बीच चर्चा का विषय होता था। पहले भी इसे कई बार इसे उठाया गया था। हालांकि बीसीसीआई अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद सौरव गांगुली को आईपीएल चेयरमैन पद ऑफर किया गया, लेकिन यह तो एक तरह से दादा का डिमोशन था।इसलिए ‘प्रिंस ऑफ कोलकाता’ के नाम से लोकप्रिय सौरव ने साफ मना कर दिया। उनका कहना था कि बीसीसीआई अध्यक्ष बनने के बाद मैं उसकी किसी उपसमिति का अध्यक्ष नहीं बन सकता। जाहिर है दादा अपमान का घूंट सह नहीं पाए। वहीं, भारत की 1983 विश्व कप विजेता टीम के सदस्य रहे रोजर बिन्नी ने भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरा और उनके इस शीर्ष पद पर निर्विरोध चुने जाने की उम्मीद भी है। बेंगलुरू के रहने वाले 67 वर्षीय बिन्नी पद के लिए नामांकन भरने वाले अब तक एकमात्र उम्मीदवार हैं और अगर कोई और उम्मीदवार दावेदारी पेश नहीं करता है तो 18 अक्टूबर को मुंबई में होने वाली बोर्ड की वार्षिक आम बैठक (एजीएम) में वह सौरव गांगुली की जगह बीसीसीआई अध्यक्ष बनेंगे। पिछले एक सप्ताह से चल रही गहमागहमी के बाद यह फैसला किया गया कि बिन्नी बोर्ड के 36वें अध्यक्ष होंगे। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि बीसीसीआई के अध्यक्ष पद के लिए बिन्नी की दावेदारी हैरानी भरी है। इस पद के लिए उनके नाम के संकेत हालांकि उस समय मिले थे जब कर्नाटक राज्य क्रिकेट संघ (केएससीए) ने बीसीसीआई एजीएम के लिए सचिव संतोष मेनन की जगह उन्हें अपना प्रतिनिधि बनाया था।