किस मामले में बढ़ी गौतम गंभीर की मुश्किल? कोर्ट ने कहा फिर से जांच करो
Gautam Gambhir Troubles Increased: दिल्ली की एक अदालत ने गौतम गंभीर की मुश्किलें बढ़ा दी है. फ्लैट खरीदारों से धोखाधड़ी के मामले में पूर्व क्रिकेटर के खिलाफ नए सिरे से जांच के आदेश दिए गए हैं. कोर्ट ने कहा कि आरोपों को देखते हुए गंभीर की भूमिका की और अधिक जांच आवश्यक है.
Gautam Gambhir Troubles Increased: दिल्ली की एक अदालत ने फ्लैट खरीदारों से धोखाधड़ी के मामले में पूर्व क्रिकेटर और भारतीय क्रिकेट टीम के वर्तमान मुख्य कोच गौतम गंभीर की बरी होने की याचिका को खारिज कर दिया है. विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने ने एक निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि गंभीर के खिलाफ लगे आरोपों पर उचित तरीके से विचार नहीं किया गया. अपने आदेश में न्यायाधीश ने लिखा कि आरोपों को देखते हुए गंभीर की भूमिका की और अधिक जांच आवश्यक है.
गंभीर पर रुद्र बिल्डवैल रियलिटी प्राइवेट लिमिटेड और अन्य रियल एस्टेट कंपनियों के निदेशक तथा ब्रांड एंबेसडर के रूप में कथित धोखाधड़ी में शामिल होने का आरोप है. न्यायाधीश ने कहा कि ब्रांड एंबेसडर होने के कारण गंभीर सीधे निवेशकों से जुड़े थे और उन्हें बरी करना गलत साबित हो सकता है. साथ ही, आदेश में उनके और कंपनी के बीच 6 करोड़ रुपये देने और 4.85 करोड़ रुपये लेने के लेनदेन का भी कोई उल्लेख नहीं है.
वित्तीय लेनदेन की जांच की आवश्यकता
अदालत ने पाया कि गंभीर ने कंपनी के साथ ब्रांड एंबेसडर के रूप में अपनी भूमिका से परे वित्तीय लेनदेन भी किया. 29 जून 2011 से 1 अक्टूबर 2013 के बीच गंभीर कंपनी के अतिरिक्त निदेशक भी रहे, और परियोजना के विज्ञापन के समय वह पदाधिकारी थे. अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि गंभीर को अधिकतर भुगतान उनकी निदेशक पद से इस्तीफे के बाद हुआ, जो उनके वित्तीय संलिप्तता की जांच को आवश्यक बनाता है.
अभियोजन पक्ष का दावा
अभियोजन पक्ष के अनुसार, गंभीर और अन्य आरोपी कंपनियों ने 2011 में इंदिरापुरम, गाजियाबाद में “सेरा बेला” नामक आवासीय परियोजना का प्रचार किया, जिसका बाद में नाम “पावो रियल” रखा गया. शिकायतकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने विज्ञापन और ब्रोशर के प्रभाव में आकर फ्लैट बुक किए और लाखों रुपये का भुगतान किया, लेकिन साइट पर कोई कार्य नहीं हुआ.
परियोजना का कानूनी विवाद
शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि भुगतान के बावजूद, परियोजना स्थल पर कोई संरचनात्मक कार्य नहीं हुआ. 2016 तक कोई प्रगति नहीं देखी गई. बाद में उन्हें पता चला कि परियोजना का न तो साइट योजना के अनुसार विकास हुआ था और न ही राज्य सरकार से कोई मंजूरी प्राप्त की गई थी. कंपनियों ने जब शिकायतकर्ताओं के सवालों का जवाब देना बंद कर दिया, तब उन्हें मालूम पड़ा कि यह साइट कानूनी विवाद में उलझी हुई थी.