1.55 करोड़ वोटर्स, 70 विधानसभा सीटें और त्रिकोणीय मुकाबला...दिल्ली में इस बार किसकी सरकार?
दिल्ली विधानसभा चुनाव की पूरी प्रोफाइल जानना जरूरी है कि कब यहां पहली बार चुनाव हुए. कौन-कौन सीएम रहा है. इस बार कितने वोटर्स मतदान करेंगे. अबतक कौन सबसे ज्यादा लंबे समय तक सीएम रहा है. मौजूदा समय में किस पार्टी के बीच मुकाबला है.
देश की राजधानी में कुछ ही घंटों बाद विधानसभा चुनावों का बिगुल बज जाएगा. चुनाव आयोग आज यानी मंगलवार दोपहर 2 बजे तारीखों की घोषणा करेगा. इसके साथ ही राजधानी में आचार संहिता लग जाएगी. हाल के दिनों में चुनाव करीब आते ही दिल्ली में कड़कड़ाती ठंड में सियासत का पारा गर्म है. नेता एक दूसरे के खिलाफ तीखी बयानबाजी कर रहे हैं. आम आदमी पार्टी लगातार चौथी बार सरकार बनाने की कोशिश में जुटी है. तो वहीं बीजेपी केंद्रशासित प्रदेश में 27 साल के सूखे को खत्म करना चाहती है.
ऐसे में आज दिल्ली विधानसभा चुनाव की पूरी प्रोफाइल जानना जरूरी है कि कब यहां पहली बार चुनाव हुए. कौन-कौन सीएम रहा है. इस बार कितने वोटर्स मतदान करेंगे. अबतक कौन सबसे ज्यादा लंबे समय तक सीएम रहा है. मौजूदा समय में किस पार्टी के बीच मुकाबला है.
सबसे पहले बात इस आगामी चुनाव की
दिल्ली में विधानसभा की 70 सीटें हैं. इस चुनाव में मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस के बीच माना जा रहा है. फिलहाल दिल्ली में आप 2013 से सत्तारूढ़ है. दिल्ली में इस बार कुल 1 करोड़ 55 लाख 24 हजार 858 वोटर हैं. चुनाव आयोग के मुताबिक, दिल्ली के चुनाव में इस बार कुल 1.55 करोड़ से ज्यादा वोटर्स होंगे. इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 83,49,645 जबकि महिला वोटर्स की संख्या 71,73,952 है. वहीं, थर्ड जेंडर की संख्या 1,261 है.
दिल्ली में 2020 के विधानसभा चुनाव की तुलना में 7.26 लाख और 2024 के लोकसभा चुनाव की तुलना में 3.10 लाख वोटर्स बढ़ गए हैं. 2020 के चुनाव के वक्त दिल्ली में 1.47 करोड़ वोटर्स थे जबकि, पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव के समय दिल्ली में वोटर्स की संख्या 1.52 करोड़ से ज्यादा थी.
दिल्ली में विधानसभा चुनाव का इतिहास जान लीजिए
दिल्ली में राज्य विधानसभा का गठन पहली बार 1952 में किया गया था. तब दिल्ली में अंतरिम विधानसभा की व्यवस्था लागू की गई थी. उस वक्त दिल्ली के पहले सीएम के रूप में ब्रह्म प्रकाश यादव ने शपथ ली थी. उस समय उनकी उम्र महज 34 वर्ष थी. इसके बाद 1955 में कांग्रेस ने गुरमुख निहाल सिंह को दिल्ली का सीएम बनाया, जिनका कार्यकाल 1956 तक रहा. इसके बाद राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के आधार पर सालभर बाद विधानसभा भंग हो गई. बाद में 1966 में दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल अस्तित्व में आ गया. इसके बाद 1993 में दिल्ली विधानसभा का गठन हुआ और पहली बार चुनाव हुए.
1993 में पहली बार हुए चुनाव
दिल्ली विधानसभा गठन के बाद 1993 में चुनाव हुए. इस चुनाव में बीजेपी ने प्रचंड जीत हासिल की और मदन लाल खुराना सीएम बने. 1956 के बाद करीब 37 साल के लंबे अंतराल के बाद दिल्ली को सीएम मिला था. लेकिन बीजेपी की प्रचंड जीत के बाद भी दिल्ली में 5 साल के भीतर 3 सीएम बदले गए. पहले मदन लाल खुराना को घोटाले के आरोपों के बीच कुर्सी छोड़नी पड़ी. इसके बाद साहिब सिंह वर्मा को कमान मिली. लेकिन महंगाई के मुद्दे पर उनका भी विरोध हुआ और उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद सुषमा स्वराज को कमान मिली. जो दो महीने से भी कम समय के लिए दिल्ली की सीएम रहीं.
1998 में कांग्रेस ने जमाया कब्जा
1998 आते-आते दिल्ली की सियासी तस्वीर पूरी तरह से बदल गई थी. बीजेपी ने सुषमा स्वराज का चेहरा आगे करके चुनाव लड़ा था. जबकि कांग्रेस ने शीला दीक्षित को अपना नेता बनाया था. इस चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई और शीला दीक्षित ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. 1998 के बाद से 2013 तक दिल्ली की सत्ता पर कांग्रेस और शीला दीक्षित का ही कब्जा रहा.
फिर आया 2013 का विधानसभा चुनाव
2013 आते-आते दिल्ली और देश में कांग्रेस के खिलाफ जबरदस्त माहौल था. विधानसभा चुनाव में भी शीला दीक्षित को 15 साल की सत्ता गंवानी पड़ी और नई नवेली आम आदमी पार्टी ने सत्ता पर कब्जा जमा लिया. इसके बाद से अबतक दिल्ली की सत्ता पर आप का ही कब्जा है. हालांकि, अब अरविंद केजरीवाल ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया है और आतिशी दिल्ली की मुख्यमंत्री हैं.
2013 का चुनावी हाल
साल 2013 के विधानसभा चुनाव में 70 सीटों वाली दिल्ली में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और उसे 32 सीटों पर जीत मिली थीं. बावजूद इसके बहुमत से फिसल जाने का कारण वह सत्ता से दूर ही रही. इस चुनाव में पहली बार चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी को 28 और कांग्रेस को 7 सीटें मिली थीं. इसके बाद AAP ने कांग्रेस का समर्थन लेकर दिल्ली में सरकार बनाई और पहली बार अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने.
49 दिन ही चल सकी सरकार
साल 2013 में बनी ये सरकार सिर्फ 49 दिन टिक सकी और केजरीवाल ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लग गया. करीब डेढ़ साल बाद 2015 में दिल्ली में फिर से चुनाव हुए और इस चुनाव ने सभी सियासी अनुमानों को ध्वस्त कर दिया. आम आदमी पार्टी ने रिकॉर्डतोड़ 67 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया और कांग्रेस शून्य पर सिमट गई. बीजेपी को इस चुनाव में तीन सीट ही मिल सकीं. इस तरह अरविंद केजरीवाल लगातार दूसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री चुने गए.
2020 में आप को रिकॉर्ड बहुमत
साल 2020 के चुनाव की बात करें तो इस बार भी AAP का शानदार प्रदर्शन जारी रहा और पार्टी को 62 सीटों पर जीत हासिल हुई. बीजेपी 5 सीटें की बढ़त के साथ 8 सीटें जीतने में कामयाब हुई और कांग्रेस फिर से लगातार दूसरी बार अपना खाता भी नहीं खोल सकी. बंपर जीत के बाद केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने.
इस बार क्या हैं चुनावी हवा?
बीजेपी और कांग्रेस चुनाव से पहले AAP को घेरने के लिए लगातार भ्रष्टाचार के मुख्य मुद्दा बनाकर दिल्ली की सत्ता में वापस आने की भरपूर कोशिश में जुटी हैं. यह चुनाव AAP के लिए कड़ी परीक्षा साबित होगा क्योंकि पार्टी के नेताओं पर लगे आरोपों का जवाब चुनाव के नतीजे देने वाले हैं.
इसी तरह कांग्रेस भी INDIA ब्लॉक से बाहर आकर चुनावी मैदान में उतरी है और पार्टी के सामने जनाधार वापस पाने की चुनौती है. वहीं, बीजेपी 1993 के चुनाव के बाद से दिल्ली की सत्ता से दूर है. ऐसे में लगातार तीन बार केंद्र की सत्ता में आने के बाद भी तीन दशक से बीजेपी को दिल्ली की सत्ता में आने का इंतजार है.