अखिलेश ने तोड़ दी अपनी वो 'कसम'
समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने मैनपुरी लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में डिंपल यादव को उम्मीदवार बनाकर 2017 की अपनी वो 'कसम' तोड़ दी है जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि भाजपा को हमारी पार्टी में परिवारवाद दिखता है तो हम तय करते हैं कि अगली बार हमारी पत्नी चुनाव नहीं लड़ेंगी।
समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने मैनपुरी लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में डिंपल यादव को उम्मीदवार बनाकर 2017 की अपनी वो 'कसम' तोड़ दी है जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि भाजपा को हमारी पार्टी में परिवारवाद दिखता है तो हम तय करते हैं कि अगली बार हमारी पत्नी चुनाव नहीं लड़ेंगी। हालांकि बाद में अखिलेश की इस बात पर आलोचना हुई कि वह पुरुष सत्तामक समाज का प्रतीक हैं और अपनी पत्नी का राजनीतिक भविष्य खुद तय करने की बात कह रहे हैं। अखिलेश ने सफाई देते हुए कहा था कि यह डिंपल का खुद का फैसला है। हालांकि इससे पहले मुलायम सिंह के भाई के बेटे तेज प्रताप यादव के नाम की चर्चा थी। उनके नाम पर लगभग सहमति बताई जा रही थी लेकिन आखिरी पलों में अखिलेश ने डिंपल के नाम का ऐलान करके सबको चौंका दिया।
सपा संरक्षक और संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद सवाल उठने लगे थे कि यहां से अब उनकी जगह कौन संभालेगा। शुरू में अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव के अलावा दबे स्वर में शिवपाल यादव का भी नाम लिया जा रहा था पर धीरे-धीरे तेज प्रताप की दावेदारी मजबूत होती गई। लेकिन गुरुवार को सपा ने जब डिंपल यादव के नाम की घोषणा की तो सवाल उठा कि अखिलेश की उस 'कसम' का क्या हुआ जिसमें उन्होंने कहा था, कि अगर बीजेपी परिवारवाद को ही मुद्दा बना रही है तो हम तय करते हैं कि अगली बार हमारी पत्नी चुनाव नहीं लड़ेंगी। बात साल 2017 की है अखिलेश यादव छत्तीसगढ़ के रायपुर में पत्रकारों से बात कर रहे थे। चर्चा बीजेपी के लगाए जा रहे परिवारवाद के आरोपों पर हुई तो अखिलेश ने कहा, 'बीजेपी में भी परिवारवाद है, बीजेपी का परिवारवाद भी देखना चाहिए। इसके बाद हमारे परिवारवाद को देखें। अपने परिवारवाद के बारे में कोई नहीं बोलता। बहरहाल, डिंपल के चुनाव मैदान में उतरने की चर्चा इस साल हुए आजमगढ़ के लोकसभा उपचुनाव के दौरान भी हुई थी। लोगों ने उनसे पूछा था कि क्या अखिलेश डिंपल को आजमगढ़ से टिकट देंगे। इस पर अखिलेश ने कहा था, 'अभी 2024 का चुनाव है, इस चुनाव में जिसको लड़ाना होगा मैं लड़ाऊंगा। इतने कम महीनों के चुनाव में क्यों मैं उन्हें चुनाव लड़वा दूं।'
मुलायम के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी सीट पर जब उम्मीदवारों के नाम पर अटकलें लगने लगीं तो राजनीति के जानकारों का कहना था कि डिंपल सीधे चुनाव लड़ने से बचेंगी। उनके लिए बैकडोर से राज्यसभा पहुंचने की व्यवस्था की जाएगी। चूंकि धर्मेंद्र यादव हाल ही में आजमगढ़ उपचुनाव हारे थे तो उनके इतनी जल्दी दूसरे उपचुनाव में उतारने की संभावना भी नहीं थी। इसके अलावा धर्मेंद्र बदायूं की सीट नहीं छोड़ना चाहेंगे। उन्होंने वहां बहुत समय दिया है। मुलायम के छोटे भाई और अखिलेश के चाचा शिवपाल के रिश्तों में लंबे समय से कड़वाहट रही है। मुलायम के निधन के बाद शिवपाल और अखिलेश के बीच संबंध कुछ सामान्य होते दिख रहे थे। शिवपाल ने कहा था कि उन्हें अखिलेश में मुलायम सिंह की छवि दिख रही थी। इसके बावजूद अखिलेश उन्हें सपा के टिकट पर मैनपुरी से चुनाव में उतारते इसकी संभावना बहुत कम थी। तेज प्रताप यादव सबसे जबरदस्त उम्मीदवार थे। वह मुलायम परिवार के ही सदस्य हैं। उनकी शादी लालू प्रसाद यादव की बेटी राजलक्ष्मी के साथ हुई है। तेज प्रताप मैनपुरी से पहले भी सांसद रह चुके हैं। साल 2014 को मोदी लहर में भी उन्होंने यहां से चुनाव लड़ते हुए अपने विरोधी को 3 लाख से ज्यादा मतों के अंतर से हराया था।
तेज प्रताप के पिता रणवीर सिंह यादव राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय थे। शिवपाल के चुनाव को मैनेज करने की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधे पर होती थी। इलाके में वह काफी लोकप्रिय भी थे। उनके निधन के बाद यह जिम्मेदारी तेज प्रताप के कंधे पर आ गई थी। इसे बखूबी निभाते हुए तेज प्रताप ने इलाके में अपनी राजनीतिक पहचान बनाई लेकिन अखिलेश के फैसले ने सबको चौंका दिया है। इतना सब होते हुए भी अखिलेश ने पत्नी डिंपल को मैनपुरी से उम्मीदवार बनाया, तो सवाल उठने लगे कि आखिर ऐसा क्यों हुआ। असल में मैनपुरी यादव परिवार की सीट मानी जाती है। चूंकि यह मुलायम की पारंपरिक सीट थी इसलिए उनके बाद यहां से सपा का जो भी कैंडिडेट जीतता वह स्वभाविक तौर पर उनकी राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी माना जाता। तेज प्रताप सीट जीतते तो यह यादव परिवार में ही रहती लेकिन उन्हें मुलायम की विरासत को आगे बढ़ाने वाले के रूप में देखा जाता। शायद अखिलेश के लिए यह स्थिति भविष्य में बहुत सुखद नहीं रहती। मैनपुरी सपा की मजबूत सीट है। इस लिहाज से सभी स्थितियां डिंपल और अंतत: अखिलेश के पक्ष में हैं। डिंपल आसानी से संसद पहुंच सकतीं हैं।