भिंड: आरटीई के तहत दिया एडमिशन, पर छात्रों को नहीं दे रहे मुफ्त में यूनिफॉर्म और किताबें
आज से लगभग 11 वर्ष पूर्व देश के संविधान में शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा देते हुए 6 से 14 वर्ष तक के प्रत्येक बच्चे को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा देने के लिए सारे देश में बड़ी महत्वाकांक्षी योजना के रूप में लागू किया गया था
संबाददाता- पीयूष बिरथरिया (भिंड, मध्य प्रदेश)
मध्य प्रदेश। आज से लगभग 11 वर्ष पूर्व देश के संविधान में शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा देते हुए 6 से 14 वर्ष तक के प्रत्येक बच्चे को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा देने के लिए सारे देश में बड़ी महत्वाकांक्षी योजना के रूप में लागू किया गया था।
इस कानून को लागू करते वक़्त उस समय की तत्कालीन सरकार द्वारा देश की जनता को इस बात का भरोसा दिलाया गया था कि इस अधिनियम के माध्यम से न केवल देश के वंचित समूह तथा गरीब तबके के प्रत्येक बच्चो को निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जायेगी।
बल्कि निजी स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक की 25 प्रतिशत सीटों पर कमजोर एवं वंचित वर्ग के बच्चों को प्रवेश दिलाकर देश के अमीर एवं गरीब बच्चों के बीच की सामाजिक खाई को भी पाटने का काम किया जायेगा। वर्तमान में इस शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12(1)(ग) है, जिसके तहत सरकार कमजोर वर्ग के बच्चों की शिक्षा के लिए निजी स्कूलों को फीस प्रतिपूर्ति की धनराशि देती है।
यहां यह भी दृष्टव्य है कि पिछले कई वर्षों से जागरूक समाजसेवी और मीडिया जगत के लोगों द्वारा अपने-अपने समाचार पत्रों और सोशल मीडिया प्लेटफार्म से प्रकाशित समाचार के अनुसार देश के कई राज्यों में निजी स्कूलों द्वारा फीस प्रतिपूर्ति की धनराशि को हड़पने की कई शिकायतें भी दर्ज की गई हैं। मगर बाहुबली शिक्षा माफिया के सामने शिक्षा विभाग हाथ जोड़े खड़ा दिखाई देता रहा है।
उसका कारण है कमीशन खाेरी हद तो तब हो गई जब निजी स्कूलों द्वारा सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को ही अपने यहां पढ़ना बताकर सरकार से भारी मात्रा में फीस प्रतिपूर्ति की धनराशि हड़प ली गयी है। इस अधिनियम के अनुसार सरकार द्वारा इन गरीब एवं कमजोर वर्ग के बच्चों की पढ़ाई के लिए उन्हें स्कूल यूनिफार्म, किताब, कापियां, पेन व पेंसिल आदि की खरीद के लिए प्रति वर्ष 5 हजार रूपये की धनराशि सीधे इनके बैंक खाते में भेजी जा रही है।
मगर मजाल है एक फूटी कौड़ी इन शिक्षा विभाग में माफिया बन चुके निजी स्कूलों के प्रबंधक द्वारा प्रवेशित राईट टू एजूकेशन के वंचित और पात्र छात्रों को दी गयी हो। इस अधिकार अधिनियम-2009 की धारा 12(1)(ग) के तहत फीस प्रतिपूर्ति की धनराशि भी निजी स्कूलों को प्राप्त हो रही है और निजी स्कूल आरटीई के नाम पर विभाग को गुमराह करते चले आ रहे हैं।
स्कूल रिकॉर्ड और कागजों में तो बच्चों का प्रवेश दिखाया जाता हैं, लेकिन हकीकत में उसे शिक्षा का अधिकार नहीं मिल पाता। गरीब तबके के बच्चों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शिक्षा के अधिकार योजना का शुभारंभ किया गया।
इसके तहत गरीब तबके के बच्चों को निशुल्क शिक्षा, गणवेश एवं पुस्तकों की उपलब्धता करवाए जाने के सख्त नियम उच्च न्यायालय द्वारा भी पारित किए गए। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि प्राइवेट स्कूल खुली मनमानी पर उतर आए हैं।
इस बात को नजरअंदाज करते हैं या यूं कहें कि नियमों की धज्जियां उड़ाने पर उतारू हो चुके हैं। भिंड जिले में पांच ब्लॉक स्तर के खण्ड शिक्षा विभाग, जिला शिक्षा विभाग और माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा संचालित किये गये हैं।
यहां हजारों की तादाद में संचालित निजी स्कूलों ने राईट टू एजूकेशन में प्राप्त फीस प्रतिपूर्ति का उपयोग अपने निजी उपयोग में लेकर घोर पाप किया है। भिंड जिला शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों की भूमिका नगण्य कर, अगर जांच की जाये तो जो खुलासा होगा उसकी आंच से सौ प्रतिशत आला अधिकारी भी नहीं बचेगे।