भोपाल: छठ महापर्व में डूबते हुए सूर्य को आज अर्घ्य देंगे, राजधानी में 2100 दीपों का होगा दीपदान
राजधानी में छठ महापर्व का मुख्य आयोजन रविवार को शीतलदास की बगिया, खटलापुरा, कमला पार्क, मां सरस्वती मंदिर भेल बरखेड़ा में होगा। साथ ही 50 से अधिक अलग-अलग स्थानों पर छठ पूजा होगी
मध्य प्रदेश। राजधानी में छठ महापर्व का मुख्य आयोजन रविवार को शीतलदास की बगिया, खटलापुरा, कमला पार्क, मां सरस्वती मंदिर भेल बरखेड़ा में होगा। साथ ही 50 से अधिक अलग-अलग स्थानों पर छठ पूजा होगी। भोजपुरी एकता मंच द्वारा यह कार्यक्रम दो दिनों तक चलेगा।
रविवार को डूबते हुए सूर्य भगवान को अघ्र्य देकर आराधना करना, सूर्य भगवान को नौका विहार कराना, 2100 दीपों का दीपदान करना आकर्षण का केंद्र रहगा। वहीं भोजपुरी लोक गायकों द्वारा अपनी प्रस्तुतियां दी जाएंगी। रविवार व सोमवार को छठ महापर्व की तैयारियों को लेकर काम पूरा हो गया है।
शनिवार को भोजपुरी समाज के लोगों ने पूरे दिन व्रत रखकर संध्या को प्रसाद ग्रहण किया। इसे खरना या लोहण्डा कहा जाता है। इधर शनिवार को भोजपुरी समाज के लोगों ने घाटों की निरीक्षण किया। तैयारियों का अवलोकन सभी घाट व कुंड विद्युत साज-सज्जा से जगमगा उठे।
ऐसे करें सूर्य भगवान की आराधना -
शाश्त्र ज्ञाता पंडित जी ने बताया कि षष्ठी के दिन सभी प्रकार के प्रसाद बनाए जाते है। सायंकाल सूर्यास्त से पहले व्रत करने वाले नदी या तालाब में प्रवेश करते हैं और सूर्य को दूध तथा जल से अर्ध्य देते है। वह तब तक जल में रहते हैं। जब तक सूर्यास्त न हो जाए। सूर्यास्त के बाद सभी लोग घर जाते हैं और रात्रि जागरण करते हैं।
इसके बाद दूसरे दिन सूर्योदय से पहले नदी पर जाकर जल में प्रवेश करते है और सूर्य के उदित होने की प्रतीक्षा करते है। जैसे ही सूर्य उदित होता है उन्हें अर्ध्य दिया जाता है। विधिवत पूजा अर्चना के बाद थोड़ा कच्चा दूध, जल और प्रसाद लेकर व्रत समापन किया जाता है। इस प्रकार जीवनदायी भगवान सूर्य की उपासना की चार दिनों तक चलने वाली पूजा पूर्ण हो जाती है।
इन जगहों पर होगी पूजा -
कोरोना के कारण दो साल बाद सामूहिक आयोजन 50 से अधिक स्थानों पर किए जाएंगे। इस दौरान श्रद्धालु निर्जला व्रत रखेंगे। शाम को घाटों पर पूजा अर्चना करेंगे। व्रतधारी घाटों पर पहुंचकर गन्ना सहित अन्य ऋतुफल,पकवान बांस के सूप एवं डलियों में रखकर भगवान सूर्य को अघ्र्य देंगे।
शीतलदास की बगिया, खटलापुरा घाट, काली मंदिर घाट, अशोका गार्डन, करोद, बागसेवनिया विश्वकर्मा मंदिर, सरस्वती मंदिर, बरखेड़ा व शिव मंदिर, कलिया सोत, जाटखेड़ी। द्वारका नगर, राजेंद्र नगर, ओल्ड सुभाष नगर, अशोका गार्डन, अयोध्या नगर आदि स्थानों के मंदिरों में पूजा कुंड बनाए गए है। जिससे सूर्यदेव को अघ्र्य दिया जा सके।
छठ पर्व और उसका वैज्ञानिक महत्व -
छठ के व्रत के संबंध में अनेक कथाएं प्रचालित हैं। उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए। तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। माना जाता है कि उसके बाद द्रोपदी की मनोकमानाएं पूरी हुई और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोकपरंपरा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मैया का संबंध भाई-बहन का है।
षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। पर्व का विज्ञान छठ पर्व की परंपरा में बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा है। षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर पर आती है। इस समय सूर्य की पराबैगानी किरणों पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती है।
ऐसे करें सूर्य यंत्र की स्थापना -
छठ पूजन के दिन सुबह उठकर सूर्य देव को प्रणाम करें। इसके बाद सूर्य यंत्र गंगाजल व गाय के दूध से पवित्र करें। विधिपूर्व पूजन के बाद सूर्य मंत्र ऊं घृणि सूर्याय नम: का जाप करने के बाद इसकी स्थापना पूजन स्थल पर कर दें।