जी का जंजाल बना बिहार का जमीनी सर्वे, अब मामले में दलालों की भी हुई एंट्री, रोक लगाने की उठी मांग
Bihar Land Survey: बिहार में जमीनी सर्वे ने लोगों की आफत बढ़ा दी है. इस बीच लोग जमीन सर्वे के लिए जरूरी कागजात को जमा करते हुए इधर-उधर फिरते दिखाई दे रहे हैं. ऐसे में मामलों में दलालों की भी एंट्री हो गई है. वहीं अब अधिकारियों के बजाय इन दलालों की ज्यादा मौजूदगी है, जो जमीन मालिकों से ज्यादा पैसे लेकर सर्वे के लिए आसान रास्ता दिखा रहे हैं.
Bihar Land Survey: बिहार में जमीन सर्वे ने लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. इस दौरान लोग जमीन सर्वे के लिए जरूरी कागजात को जमा करते हुए इधर-उधर फिरते दिखाई दे रहे हैं. इस बीच भूमि सर्वे के पूर्व कागजात तैयार करने में प्रखंड के किसानों और जमीन मालिकों के बेहद परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं. ऐसे में लोगों के सामने एक नई समस्या आई है. इस बीच अब पूरे मामले में दलाल भी सक्रिय भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं. वहीं इस समस्या को देखते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) विधायक महबूब आलम ने अभी जमीन सर्वे पर रोक लगाने की मांग की.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस बीच लोग अब जमीन की रसीद पाने के लिए बहुत परेशान हैं, और कई किसानों का दाखिल खारिज अभी भी रुका हुआ है. सरकार सर्वे के लिए खुद की वंशावली मांग रही है, जो पाटीदार समाज में बंटवारे के लिए तैयार करना मुश्किल हो रहा है. शपथ पत्र बनवाने के लिए पोस्ट ऑफिस में टिकट के लिए रोज मारामारी हो रही है. इन सब मुश्किलों के बावजूद, लोग अपने जमीन के कागजात सही करने में लगे हुए हैं. इस समय, अंचल कार्यालय और सर्वे के लिए बने कार्यालय में लोगों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है.
दलालों की भी हुई एंट्री
इस दौरान सर्वे का काम शुरू होते ही, प्रखंड क्षेत्र में दलाल और बिचौलिए सक्रिय भूमिका में आ गए हैं. वहीं अब अधिकारियों के बजाय इन दलालों की ज्यादा मौजूदगी है, जो जमीन मालिकों से ज्यादा पैसे लेकर सर्वे के लिए आसान रास्ता दिखा रहे हैं. लोग चाहते हैं कि उन्हें जल्दी से कागजात मिले और सर्वे आसानी से हो. इसी बीच, संबंधित कार्यालयों के कर्मचारी भी कुछ लोगों को अपनी मदद के लिए रखे हुए हैं, जो रसीद कटवाने, म्यूटेशन करवाने और वंशावली बनाने के लिए लोगों से पैसे ले रहे हैं.
मामले में क्या बोले विधायक महबूब आलम?
इस बीच मामले में माले विधायक महबूब आलम ने कहा, 'मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2006 से जो डी बंदोपाध्याय की सिफारिशें लागू करने की कोशिश की है, वो असल में भूमि सुधार आयोग की सिफारिशों को लागू नहीं करने के बराबर है. बंदोपाध्याय रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में 21 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन खाली पड़ी है, जिसे भूमिहीन किसानों को देना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. आज लाखों भूमि से जुड़े मुकदमे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. मुख्यमंत्री को इन मुकदमों का जल्दी फैसला करना चाहिए. जिन जमीनों पर मुकदमे हैं, उनका सर्वेक्षण कैसे किया जाएगा?