भाजपा का बड़ा दांव! क्या इस बार दलित नेता संभालेंगे यूपी की कमान? अटकलें तेज

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर अटकलें तेज हैं. इस बार कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा किसी दलित नेता को यह जिम्मेदारी सौंप सकती है, जिससे वह समाजवादी पार्टी (सपा) के 'PDA' (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) नैरेटिव को टक्कर दे सके और बसपा के कमजोर पड़े वोट बैंक को अपनी ओर खींच सके.

Deeksha Parmar
Edited By: Deeksha Parmar

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) के प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव को लेकर तगड़े कयास लगाए जा रहे हैं. खासकर, यह चर्चा हो रही है कि इस बार पार्टी किसी दलित नेता को प्रदेश अध्यक्ष बना सकती है. इस कदम के पीछे भाजपा की मंशा यह हो सकती है कि वह समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता अखिलेश यादव द्वारा चलाए गए ‘पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक’ (PDA) के नैरेटिव का मुकाबला कर सके.

राजनीतिक हलकों में यह चर्चा जोरों पर है कि भाजपा किसी ऐसे दलित नेता को मौका दे सकती है, जो आरएसएस और भाजपा के पुराने कार्यकर्ता के तौर पर पार्टी के विचारधारा से मेल खाता हो और उसे मजबूत राजनीतिक आधार प्राप्त हो. पार्टी की इस रणनीति का उद्देश्य बसपा के वोट बैंक पर भी नजर गड़ाए रखना है, जो पिछले कुछ सालों से कमजोर पड़ा है और जिस पर सपा की भी निगाहें हैं. 

इन दलित नेताओं के नामों की चर्चा

अगर भाजपा सचमुच दलित नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाती है तो इस फैसले को लेकर तीन प्रमुख नाम सामने आ रहे हैं. ये तीन नेता हैं. विद्या सागर सोनकर, रामशंकर कठेरिया और राम सकल. पार्टी के भीतर यह कयास लगाए जा रहे हैं कि इनमें से ही किसी एक को इस महत्वपूर्ण पद का भार सौंपा जा सकता है. भाजपा ने अब तक उत्तर प्रदेश में किसी दलित नेता को प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया था.

भाजपा का ऐतिहासिक कदम

ऐसे में अगर पार्टी इस बार दलित समाज से किसी नेता को यह जिम्मेदारी देती है, तो यह एक ऐतिहासिक कदम होगा. इस कदम से न केवल भाजपा को अपने दलित वोट बैंक को मजबूत करने में मदद मिलेगी, बल्कि सपा द्वारा पिछड़ा और दलित समाज के समर्थन के लिए चलाए जा रहे अभियान को भी कड़ी टक्कर मिलेगी.

क्या है भाजपा का मकसद?

कुछ समय पहले ही भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 70 नए जिला और महानगर अध्यक्षों की नियुक्ति की थी, जिनमें से 39 सवर्ण जातियों के थे. इस फैसले के बाद सपा और बसपा ने आरोप लगाया था कि भाजपा ने पिछड़े और दलितों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया है. विधानसभा चुनाव 2022 के बाद से सपा और बसपा दोनों ही दलों ने दलितों और पिछड़ों को आकर्षित करने के लिए अपनी रणनीतियाँ तैयार की हैं, और भाजपा इस चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है.

चौंकाने वाला हो सकता है फैसला

इससे पहले भाजपा ने जाट समुदाय से आने वाले भूपेंद्र चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था, और इससे पहले महेंद्रनाथ पांडेय, केशव प्रसाद मौर्य, स्वतंत्र देव सिंह और लक्ष्मीकांत वाजपेयी जैसे नेता इस पद पर रह चुके हैं. लेकिन इस बार पार्टी का नेतृत्व चौंकाने वाला निर्णय ले सकता है, और दलित समाज से किसी प्रभावशाली नेता को यह जिम्मेदारी दी जा सकती है.

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26 March 2025, 02:47 PM IST

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