Uttar Pradesh by-election results: उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव में बसपा को बड़ा झटका लगा है. राज्य की 9 सीटों में से 6 सीटों पर बसपा के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. इसके अलावा, पश्चिमी यूपी की सीटों पर बसपा से ज्यादा वोट चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के उम्मीदवारों को मिले हैं. लगातार हार और दलित वोटों का खिसकना बसपा के लिए चिंता का कारण बन गया है. ऐसे में मायावती पार्टी में बड़े बदलाव और गठबंधन पर विचार कर सकती हैं.
इन उपचुनावों में बीजेपी ने 6 सीटें, आरएलडी ने 1 और सपा ने 2 सीटें जीती हैं. वहीं, बसपा एक भी सीट नहीं जीत सकी और उसका वोट प्रतिशत 2022 के विधानसभा चुनाव के बराबर भी नहीं रहा. खासकर कुंदरकी, मीरापुर और सीसामऊ सीटों पर बसपा को बहुत कम वोट मिले. इसके अलावा, गाजियाबाद में भी बसपा का वोट कम होकर सिर्फ दस हजार तक सिमट गया है, और खैर केतहरी सीट पर सपा ने कब्जा कर लिया है.
बसपा की स्थिति इस बार बहुत खराब रही है. कुंदरकी और मीरापुर जैसे इलाकों में पहले बसपा के विधायक थे, लेकिन अब यहां पार्टी को कम वोट मिले हैं. इससे यह साफ हो रहा है कि बसपा का मुख्य वोट बैंक, जाटव समुदाय, भी अब मायावती से अलग हो रहा है और नए सियासी विकल्प की तलाश में है.
मायावती ने उपचुनाव में न लड़े जाने का ऐलान किया था, लेकिन अब वह पार्टी के कोऑर्डिनेटरों से रिपोर्ट लेने लगी हैं. सूत्रों के मुताबिक, मायावती ने बुधवार को यूपी से बाहर काम देख रहे सभी कोऑर्डिनेटरों की बैठक बुलायी है. इसके अलावा, यूपी में पार्टी के संगठन का जिम्मा संभालने वाले 56 प्रमुख कोऑर्डिनेटरों और नेताओं की मीटिंग भी होने की संभावना है. पार्टी में बदलाव की बात हो रही है, और कुछ पुराने कोऑर्डिनेटरों को हटाकर युवाओं को जिम्मेदारी दी जा सकती है.
संगठन में बदलाव की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है. मायावती ने झारखंड के पार्टी नेता गया शरण दिनकर को कानपुर का जिम्मा सौंपा है, और धर्मवीर अशोक को पूर्वांचल से हटाकर बुलंदशहर में तैनात किया है. मायावती अब चंद्रशेखर आजाद की बढ़ती राजनीतिक ताकत को रोकने के लिए कई बड़े कदम उठा सकती हैं.
बसपा के एक नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि पार्टी का संगठन पूरी तरह से कमजोर पड़ चुका है. संगठन मजबूत करने के लिए कई कोशिशें की गईं, लेकिन कोई असर नहीं हुआ. पार्टी के ज्यादातर बड़े नेता चुनावी प्रक्रिया में सक्रिय नहीं हैं और उनकी भूमिका केवल उम्मीदवारों के चयन तक ही सीमित हो गई है. संगठन में सुधार किए बिना बसपा का दोबारा उभार मुश्किल है. First Updated : Tuesday, 26 November 2024