Bihar Politics: बिहार की राजनीति में एक बार फिर से सीएम नीतीश कुमार के बदलने की आशंका लगाई जा रही है. कहा जा रहा है कि, बीते दिनों जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी एवं राष्ट्रीय परिषद की बैठक में नीतीश अपने नजदीक के पार्टी सदस्यों से दूरी बनाते नजर आए. दरअसल नीतीश के लिए अपनों को पराया कर देना बड़ी बात नहीं है. बता दें कि राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह से सीएम ने दूरी बना ली हैं, वहीं ललन सिंह ने पार्टी से इस्तीफे दे दिया है. जबकि इससे पहले भी नीतीश ने अपने राजनीतिक गुरु जॉर्ज फर्नांडिस और शरद यादव से लेकर कई नेताओं से दूरी बना चुके है.
आपको बता दें कि सीएम नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक गुरु जॉर्ज के साथ मिलकर सबसे पहले समता पार्टी का गठन किया था. इसके बाद पार्टी का शरद यादव की पार्टी से मिलाकर साल 2003 में जदयू को अस्तित्व में लाया गया. इस जदयू पार्टी ने लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद से गठबंधन करके सरकार बनाई. जिसके बाद कुछ मतभेदों के कारण साल 2009 के चुनाव में जॉर्ज का मुजफ्फरपुर से टिकट काट दिया गया था. इसके बावजूद भी जॉर्ज निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे, और उन्हें हार का सामना करना पड़ा, इतना ही नहीं इसी के उपरांत उनकी राजनीति पर पूरी तरह से पूर्ण विराम लग गया था.
राजनीतिक गुरु जॉर्ज के अलावा नीतीश और शरद यादव की दोस्ती काफी गहरी चली. मगर वर्ष 2013 में जदयू के राजद से रिश्ता खत्म करने पर उनके संबंधों में दूरी बन गई. जबकि जदयू पार्टी में आरसीपी सिंह, उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी, प्रशांत किशोर का पद नीतीश के बाद नंबर दो पर रहा. वहीं वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली हार के उपरांत नीतीश ने जिस मांझी को सीएम पद की जगह दी थी, और उन्हें नौ महीने बाद ही सीएम पद से टाटा करना पड़ा.
इतना ही नहीं उपेंद्र कुशवाहा ने दो बार जदयू में एंट्री ली और दोनों ही बार वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में जीत के रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर को नीतीश ने अपना सलाहकार बनाया, साथ ही राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद दे दिया. दरअसल उन्हें भी कुछ महीने बाद पार्टी से बाहर कर दिया गया, ठीक इसी तरह से नौकरशाही से राजनेता बने आरसीपी सिंह को भी राज्यसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया गया. जिसके बाद आरसीपी को भी अपने पद से अलग होना पड़ा.
First Updated : Thursday, 28 December 2023