Congress's Defeat In Haryana Elections: हरियाणा के चुनावी नतीजों ने सभी को हैरान कर दिया. एग्जिट पोल में कांग्रेस की वापसी की उम्मीद जताई गई थी लेकिन जब नतीजे आए तो कांग्रेस 37 सीटों पर सिमट कर रह गई. वहीं बीजेपी ने 48 सीटें जीतकर एक नया रिकॉर्ड बनाया. यह पहला मौका है जब बीजेपी लगातार तीसरी बार सरकार बना रही है. लेकिन आखिर ऐसा हुआ क्यों? आइए जानते हैं इस हार के पीछे के बड़े कारण.
भूपेंद्र हुड्डा का अति-विश्वास
कांग्रेस ने अपने चुनावी अभियान में भूपेंद्र हुड्डा को प्रमुखता दी. हुड्डा दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और जाट समुदाय में उनका बड़ा नाम है. उन्होंने कांग्रेस के 72 उम्मीदवारों का समर्थन किया, लेकिन इस पर लोगों की राय में बंटवारा दिखा. बीजेपी ने 'बापू-बेटी की पार्टी' का नारा देकर जाट बनाम गैर-जाट का नैरेटिव सेट किया, जिससे कांग्रेस को नुकसान हुआ.
दरअसल कांग्रेस के भीतर भी अंतर्कलह सामने आई है. जब प्रदेश अध्यक्ष उदय भान और कुमारी सैलजा के बीच तीखी बहस हुई तो राहुल गांधी को दखल देना पड़ा. इससे पार्टी में और दरार बढ़ गई. तीनों नेता एक मंच पर साथ नहीं दिखे, जिससे पार्टी की एकता पर सवाल उठे.
कुमारी सैलजा की नाराजगी
कुमारी सैलजा दलित समुदाय की बड़ी नेता मानी जाती हैं. हालांकि, उन्हें टिकट देने में कांग्रेस ने गंभीरता नहीं दिखाई. सैलजा ने 30-35 समर्थकों के लिए टिकट मांगे, लेकिन पार्टी ने केवल 9 लोगों को ही मौका दिया. इससे उनकी नाराजगी बढ़ी और बीजेपी ने इस मौके का फायदा उठाया. एक कांग्रेस कार्यकर्ता की सैलजा पर अभद्र टिप्पणी ने आग में घी डालने का काम किया, जिससे दलित वोट भी कांग्रेस से दूर हो गए.
जाट और दलित वोट का बंटवारा
कांग्रेस ने भूपेंद्र हुड्डा पर भरोसा किया था, यह सोचकर कि वह जाटों को लामबंद कर सकेंगे. लेकिन इस बार जाट भी बीजेपी के साथ चले गए. जाट बेल्ट की ज्यादातर सीटें बीजेपी के पास गईं. वहीं, दलित वोट भी सैलजा की नाराजगी की वजह से कांग्रेस से दूर चला गया. बीजेपी ने अनुसूचित जातियों के लिए रिजर्व 17 सीटों में से 8 पर जीत दर्ज की, जबकि पिछले चुनाव में यह संख्या केवल 5 थी.
चुनाव का नतीजा
कांग्रेस ने भूपेंद्र हुड्डा और कुमारी सैलजा की जिद के कारण चुनाव में महत्वपूर्ण मतदाता वर्गों को खो दिया. भले ही उन्होंने जातिगत जनगणना की बात कही लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ. चुनावी नतीजों ने साफ कर दिया कि कांग्रेस को अब अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करने की जरूरत है.
इस चुनाव ने यह साबित कर दिया कि पार्टी के भीतर की आपसी खींचतान और अति-विश्वास ने कांग्रेस की लुटिया डुबो दी. अब देखना यह है कि क्या कांग्रेस इन चुनौतियों का सामना कर पाएगी या फिर आगे भी इस तरह की हार का सामना करना पड़ेगा. First Updated : Wednesday, 09 October 2024