कांग्रेस का शैलजा को किनारे करने का खेल, हरियाणा चुनाव में दलित नेता की छवि पर उठा सवाल!
हरियाणा विधानसभा चुनाव के करीब आते ही, कांग्रेस पार्टी ने प्रमुख दलित नेता कुमारी शैलजा को राजनीतिक खेल से बाहर कर दिया है. हालांकि शैलजा का जमीनी स्तर पर मजबूत आधार था, पार्टी नेतृत्व ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रभाव को बनाए रखने के लिए उन्हें किनारे कर दिया. टिकट वितरण में असमानता और शैलजा के समर्थकों को बाहर करने से साफ है कि पार्टी के भीतर गहरे राजनीतिक खेल चल रहे हैं. क्या यह कदम दलित विरोधी पूर्वाग्रह को उजागर करता है? कांग्रेस की अंदरूनी चालें और हुड्डा का दबदबा इस चुनावी ड्रामे को और भी ज्यादा दिलचस्प बना रहे हैं.
Haryana Election: हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए मतदान में कुछ ही सप्ताह बचे हैं और कांग्रेस पार्टी ने प्रमुख दलित नेता कुमारी शैलजा को रणनीतिक रूप से किनारे कर दिया है. बावजूद इसके कि शैलजा का जमीनी स्तर पर मजबूत आधार था, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रभाव को बनाए रखने के लिए उन्हें हाशिए पर डाल दिया है. यह कदम दलित विरोधी पूर्वाग्रह को दर्शाता है.
असल में, कांग्रेस पार्टी में भूपेंद्र सिंह हुड्डा का बहुत बड़ा असर रहा है और इसी वजह से शैलजा को कमजोर किया गया है. शैलजा की बढ़ती सक्रियता को अचानक रोक दिया गया जो उनके रोल को कम करने के प्रयास का संकेत है. दूसरी ओर, कांग्रेस के नेता राहुल गांधी वंचितों की समस्याओं को उठाने का दावा कर रहे हैं लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि उनकी अपनी पार्टी में शैलजा जैसी दलित महिला नेता की आवाज को दबा दिया गया है.
टिकट वितरण में असमानता
कांग्रेस ने हरियाणा की 90 सीटों में से 89 पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है जिनमें से 72 उम्मीदवार सीधे तौर पर हुड्डा के प्रति वफादार हैं. इसके विपरीत, शैलजा के करीबी केवल 9 उम्मीदवार ही पार्टी सूची में शामिल हो पाए हैं. शैलजा ने नरवाना और अंबाला शहर से टिकट के लिए समर्थन दिया, लेकिन उनके समर्थकों के टिकट काट दिए गए जो हुड्डा खेमे के प्रभाव को स्पष्ट करता है.
शैलजा का राजनीतिक हाशिए पर जाना
लोकसभा चुनाव के बाद कुमारी शैलजा ने मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जताई थी लेकिन पार्टी नेतृत्व के निर्देश ने उन्हें चुनाव से बाहर कर दिया. कांग्रेस द्वारा शैलजा को किनारे करना सिर्फ व्यक्तिगत अपमान नहीं बल्कि जानबूझकर एक दलित नेता को मुख्यधारा की राजनीति से बाहर रखने का प्रयास है. यह घटना कांग्रेस के भीतर की चालों और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रभाव को उजागर करती है.
दलित विरोधी चेहरा
कांग्रेस का शैलजा के साथ व्यवहार उसकी दलित विरोधी प्रवृत्तियों को स्पष्ट करता है. दलितों के प्रतिनिधित्व का दावा करने के बावजूद, असली प्रतिनिधित्व की कमी स्पष्ट हो रही है. कांग्रेस के भीतर सत्ता संघर्ष और हुड्डा का प्रभाव पार्टी की गतिशीलता में बड़े बदलाव ला रहे हैं, जो चुनाव से पहले एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना को दिखाता है.